क्या एकबार फिर दुहराया जायेगा इतिहास सत्ता को चुनौती देने का ?

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*खरी-अखरी*(सवाल उठाते हैं पालकी नहीं):*अब बिहार में यह संभव नहीं दिखता कि हथेलियों में चंद सिक्के रखकर सत्ता मुस्कराते हुए निकल जाय। बिहार उस स्थिति को पार कर चुका है और ये फैसला 2025 में होना है। सवाल यह नहीं है कि कौन जीतेगा कौन हारेगा। दरअसल बिहार के भीतर राजनीति की नई कोपलें फूट रही हैं। जाति संघर्ष के आसरे जाति जनगणना ने एक नया संदेश दिया है कि वो कौन सा तबका है जो हासिये पर है, वो कौन सा तबका है जो हासिये का जिक्र करता है लेकिन मुख्य धारा के साथ खड़ा है। मुख्य धारा के भीतर कौन सी राजनीति है जिसमें जाति मायने नहीं रखती है। विधानसभा के भीतर जिन जातियों के एमएलए हैं उसमें सबसे बड़ी तादात तो पिछड़े तबके की ही है। रास्ता तो बिहार के छात्रों को ही निकालना होगा। राजनीति की चौखट पर माथा टेक कर आप कुछ पा नहीं सकते ये संदेश बिहार ने बार बार दिया है। यह अलग बात है कि हर संदेश के बाद वहां के छात्रों के साथ धोखा हुआ है। इस बार छात्रों को चिंतन-मनन के साथ सचेत रहते हुए अपनी दिशा तय करनी होगी और हर उस राजनीतिक समीकरण को तोड़ना होगा जिस राजनीतिक समीकरण के सहारे जमकर राजनीति होती है और चुनावी फैसलों के बाद यह मान लिया जाता है कि जो जीता वही सिकंदर।*

*ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि कई बार देखा गया है कि बिहार की आंधी दिल्ली की सत्ता को डिगा सकती है। राजनीति हो या राजनीतिक सत्ता के सामने अधिकतर छात्रों ने ही चुनौती पेश की है। ये ताकत विपक्ष के पास कभी नहीं रही कि वह राजनीति के भरोसे सत्ता को चुनौती दे सके। राजनीतिज्ञों ने तो हमेशा छात्रों के कांधे चढकर ही सत्ता पाई है मगर छात्रों की समस्याओं का समाधान करने की स्थिति में कोई भी सत्ता कभी नहीं आ पाई। मौजूदा वक्त में भी छात्र अपने बजूद की लड़ाई ही लड़ रहे हैं खासकर बिहार के छात्र। बिहार में छात्र आन्दोलन का अपना एक इतिहास है, जिसकी शुरूआत होती है 1956 में, जब आजादी के बाद पहले हुए छात्र आन्दोलन ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को चुनौती देकर इतिहास रचा था। हुआ यह था कि एक छात्र की मौत हो जाने से पटना युनिवर्सिटी के छात्र आन्दोलनरत हुए तब उस वक्त पीएम नेहरू को पटना आना पड़ा और नेहरू को छात्रों का गुस्सा और नेहरू गो बैक के नारे झेलने पड़े थे और राज्यपाल को जांच के आदेश देने पड़े थे।*

*1974 में गुजरात में हुए आन्दोलन के बाद बिहार की तमाम युनिवर्सिटी के छात्र लामबंद होने लगे। 18 मार्च 1974 को विधानसभा का घिराव करने का तय किया गया। विधानसभा घिराव के दौरान गोली चली और उसमें 3 छात्रों की मौत हो गई। जयप्रकाश नारायण जो पहले छात्रों द्वारा किए गए विधानसभा घिराव के पक्ष में नहीं थे उन्होंने तय किया कि अब वे छात्र आन्दोलन के साथ खड़े होंगे। और जेपी ने 5 जून 1974 को सम्पूर्ण क्रांति का नारा देते हुए पटना से ही दिल्ली की सत्ता को चुनौती दे दी। इसके बाद मंडल कमीशन की रिपोर्ट और मंडल को लेकर जिस तरह की राजनीति बिहार और उत्तर प्रदेश में पनपी उसने कई राजनीतिक दलों को जन्म भर नहीं दिया बल्कि सत्ता तक पहुंचा दिया। बिहार में चाहे वह नितीश कुमार हों या लालू प्रसाद यादव छात्र आन्दोलन की ही पैदाइश हैं। छात्र आन्दोलन से जन्मे नितीश कुमार जो आज बिहार के सत्ता प्रमुख हैं आंख पर पट्टी बांधे आन्दोलनरत छात्रों पर वाटर कैनन (पानी की बौछारें) और लाठीचार्ज करवा रहे हैं।*

*बिहार का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि 19 वर्ष से लगातार (2005 – 2010, 2010 – 2015, 2015 – 2017, 2017 – 2020, 2020 – 2022, 2022 – 2025, इसके पहले भी वे 01 जनवरी 2000 – 7 जनवरी 2007 सात दिन के लिए) प्रदेश का मुखिया बने एक ही व्यक्ति (नितीश कुमार) के राज में आज भी बिहार में सबसे कम रोजगार, सबसे ज्यादा गरीबी, सबसे ज्यादा लोग खेती पर निर्भर हैं। जबकि सबसे ज्यादा युवा बिहार में ही हैं। 22 लाख से अधिक युवाओं के नाम तो सरकारी रोजगार कार्यालय में दर्ज हैं। एक तो नौकरी नहीं ऊपर से नौकरी वाली परीक्षाओं में पेपर लीक, पेपर को अपने अनुकूल बनाने की परिस्थितियों से छात्रों में स्वाभाविक तौर पर गुस्सा पनपा और वे असहज होते चले गए और नितीश कुमार छात्रों की समस्याओं का निदान करने के बजाय उन छात्रों पर डंडे बरसवा रहे हैं। छात्रों का आन्दोलन इस बात को बता रहा है कि दरअसल पेपर आपका (नितीश कुमार) लीक हुआ है, रिजल्ट आपका सामने आ गया है।*

*2025 (सितम्बर-अक्टूबर) में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं। अभी से राजनैतिक गोलबंदी, छात्रों का संघर्ष इस बात की ओर ईशारा करता है कि सत्ता युवाओं को रोजगार देने की स्थिति में नहीं है, उसके पास कोई विजन, कोई दृष्टि नहीं है। पैसे वालों को तथा मैनेज करने वालों को तो रोजगार मिल जाता है मगर गरीब और मैनेज न कर पाने वाले तो रोजगार से वंचित हो रहे हैं तो ऐसा लगता है कि परीक्षा, परीक्षा का पेपर, पेपर के बाद रिजल्ट सब कुछ को बिजनेस माडल में तब्दील कर दिया गया है। रोजगार को लेकर छात्रों के सामने घना अंधकार हो सकता है लेकिन सत्ता और सत्ता के चाकर भी अंधे बन कर छात्रों के साथ इस तर्ज पर पेश आ रहे हैं। तो क्या इस बात से छात्रों को लुभाया जा सकता है जो योजनाएं सीएम और पीएम के नाम से चलाई जा रही हैं।*

*बिहार में तकरीबन 80 लाख उच्च शिक्षित और लगभग 26 लाख छात्र 1092 कालेजों में अध्ययनरत हैं। यानी उनकी संख्या 13 करोड़ की आबादी में 1 करोड़ से ऊपर है। अगर इन्हें एक धागे में पिरो दिया जाय तो कल्पना कीजिए कि कितनी बड़ी माला बनेगी और उसके घेरे में कौन कौन समा जायेगा। देशवासियों की इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है लोगों के हाथों में काम देने के बजाय मुफ्त में 5 किलो अनाज या बेरोजगारी भत्ता के नाम पर रुपये के चंद टुकड़े पकडाये जा रहे हैं और ढिंढोरा विश्व गुरु बनने का पीटा जा रहा है। दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा सहित अलग अलग जगहों के छात्र पटना आ कर आन्दोलनरत इसलिए हैं कि बिहार की 58 फीसदी पापुलेशन 25 साल की आयु तक के बेरोजगारों की है। तकरीबन 4 करोड़ 57 लाख बच्चे रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं जो देशभर में सबसे ज्यादा है।*

*क्या बिहार के युवा ये समझने लगे हैं कि लडाई भले ही राजनैतिक तौर पर ना हो लेकिन राजनैतिक चुनौती देने वाली जरूर होनी चाहिए इसलिए 2025 का चुनाव नितीश कुमार के लिए इम्तिहान से कम नहीं होगा ? नितीश कुमार पिछले 20 सालों से बिहार का चेहरा बने हुए हैं लगता है अब नितीश कुमार से पल्ला झाड़ने (परचा लीक करने) के लिए बीजेपी (मोदी) और आरजेडी (लालू – तेजस्वी) मन बना चुके हैं। बिहार में जातीय जनगणना के बाद कुछ छुपा हुआ नहीं रह गया है। छुपा हुआ कुछ है तो वह है सिस्टम जिसको राजनीतिक सत्ता अपने आप को सत्ता में बनाये रखने के लिए तिकड़म के ताने-बाने बुनती रहती है। मगर लगता है कि पहली बार छात्र ये समझने लगे हैं कि उन्हें इस राजनीति के दायरे में नहीं आना है, जाति के दायरे में, जातिगत वोट बैंक के दायरे में नहीं आना है। राजनीतिक सलाहकार से नेता बने प्रशांत किशोर जो बिहार में राजनीति की नई पारी खेलने के लिए आतुर हैं वो छात्र आन्दोलन में आये तो जरूर लेकिन जब छात्रों पर पुलिसिया जुल्म शुरू हुआ उस समय प्रशांत किशोर घटना स्थल से नदारत थे। बाद में प्रशांत किशोर ने मीडिया के सामने सफाई देते हुए कहा कि छात्रों पर लाठीचार्ज उनके जाने के बाद किया गया है, यह सरासर गलत है, जिन लोगों ने ये किया है उन्हें छोड़ा नहीं जायेगा। प्रशांत किशोर की सफाई भी सरकार की तरह रटी रटाई है। हो सकता है डैमेज कंट्रोल करने के लिए कलको नितीश कुमार भी यही कहेंगे कि दोषियों को छोड़ा नहीं जायेगा।*

*बिहार के किसानों की आय देश के भीतर सबसे कम है। इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि तकरीबन 32 फीसदी किसान जो बिहार में खेतों के मालिक तो हैं मगर मजदूरी करने पंजाब और हरियाणा जाते हैं। जितनी राशि किसानों को किसान सम्मान निधि के रूप में सालभर में दिये जाते हैं उतनी ही आय है बिहार के किसानों की सालभर में 6000 रुपये। मनरेगा के तहत काम मिलता है मात्र 41 दिन, मजदूरी 238 रुपैया रोज कुल 9758 रुपया मतलब 26 रुपया 73 पैसा रोज। चूंकि बिहार की माली हालत इतनी खराब है कि 1000 रुपया भी आक्सीजन का काम करता है। तो क्या छात्र बिहार की सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए राजनीतिक सिस्टम को समझ पायेगा। बिहार ऐसे चक्रव्यूह में फंसा हुआ है जिसकी माली हालत राजनैतिक तौर पर उस दरिंदगी के साथ खड़ी हुई है जहां वो अपने भरोसे खड़ा नहीं हो सकती है। यही हकीकत नितीश कुमार की भी है। वो चेहरा जरुर हैं मगर खुद के भरोसे बहुमत ला नहीं सकते दूसरी ओर हर पार्टी को सत्ता चाहिए तो वह उस चेहरे के भरोसे सत्ता की ताकत अपने साथ रखकर मलाई खाता है।*

*अश्वनी बडगैया अधिवक्ता*
_स्वतंत्र पत्रकार_

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