न ही सुनाई पड़ते सावन के कजरी गीत न ही नजर आते झूले, ग्रामीण अंचलों मैं धीरे-धीरे खत्म हो रही परंपरा
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सुग्रीव यादव स्लीमनाबाद : पवित्र सावन मास चल रहा है।सावन मास के आंनद की जो अनुभूति बहुत समय देखने को मिलती थी वह अब नजर नही आती है।बहुत समय पहले तक
बदरा छाए के झूले पड़ गए हाय, कि मेले सज गए, मच गई धूम रे, ओ आया सावन झूम के जैसे गीत सावन में झूले, तन-मन के रोमांच से लेकर प्रकृति की सुंदरता को बयां करते थे लेकिन वर्तमान समय के संग अब धीरे धीरे सावन गीतों विलुप्त हो रही है। हर साल सावन आता है, घनघोर घटाएं छाती हैं, लेकिन पेड़ों पर झूले नजर नहीं आते। ना कजरी की मीठी तान सुनाई पड़ती है । अब सब आधुनिक हो गया है।ग्रामीण इलाको मैं न तो पहले की तरह बाग रहे न ही झूला पसंद करने वालीं युवतियां और महिलाएं। अब तो हालत ये है कि नव विवाहित महिलाएं भी सावन में अपने पीहर नहीं आतीं। इसलिए न तो विरह के गीत सुनाई पड़ते हैं, न ही झूलों को सावन के आने का इंतजार रहता है।
कजरी गीत कराते थे सावन की अनुभूति-
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दो दशक पहले तक जब गांव-मुहल्लों से कजरी के गीत कानों में गूंजने लगते थे तो सावन मास के आने का अहसास हो जाता था। युवतियां और महिलाएं मेहंदी रचाकर, कजरी गीत गाकर झूला झूलती थीं। विवाहित महिलाएं सावन की शुरुआत में ही पीहर आ जाती थीं।
स्लीमनाबाद ब्राह्मण पुरा निवासी मनोरमा त्रिपाठी बताती हैं कि उस समय तकरीबन हर मोहल्ले में एक न एक पेड़ तो ऐसा होता ही था जहां झूला पड़ जाता था। सामान्य तौर पर झूला नीम और आम के पेड़ पर डाला जाता था। धीरे-धीरे पेड़ घटते गए और लोगों के मन का रोमांच भी खत्म हो गया।लेकिन अब जो पेड़ हैं भी उन पर झूले नहीं पड़ सकते।
संस्थाए करती हैं औपचारिकता-
स्लीमनाबाद निवासी उपमा त्रिपाठी, सरिता त्रिपाठी ने बताया कि अब सावन के झूले कहीं नजर नही आते। इसके विपरीत साधन संपन्न लोग अपने बगीचों और बरामदों में लकड़ी, बांस और लोहे आदि से बने झूले रखते हैं। इन झूलों के लिए न तो सावन का इंतजार किया जाता है ओर न ही सिर्फ सावन मैं इन पर बैठा जाता है।
कुछ संस्थाएं सावन में एक-दो दिन आयोजन करके झूला उत्सव करके इस याद को ताजा रखती हैं कि सावन में झूला भी झूला जाता है।बल्कि सावन माह के कजरी गीत जरूर कही कही सुनाई देते है।
स्लीमनाबाद स्थित सिंहवाहिनी महिला मंडल की सदस्यों के द्वारा सावन माह मैं प्रतिदिन रामचरित मानस पाठ आयोजित किया जाता है।उसी कार्यक्रम मे सावन के कजरी गीतों का गायन किया जाता है।
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