बसंत पंचमी :माँ सरस्वती को प्रसन्न करने कुछ इस तरह करें पूजन 

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ज्योतिषचार्य, निधिराज त्रिपाठी,माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है। ऐसे में सरस्वती पूजा की तिथि का शुभारंभ 13 फरवरी, दिन मंगलवार को 2 बजकर 41 मिनट पर होगा। वहीं, इसका समापन 14 फरवरी, दिन बुधवार को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, बसंत पंचमी यानी कि सरस्वती पूजा 14 फरवरी को मनाई जाएगी।
14 फरवरी के दिन सरस्वती पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 30 मिनट से शुरू होगा और उसका समापन दोपहर 1 बजकर 30 मिनट पर होगा। इस अवधि में मां सरस्वती की विधि विधान से पूजा करें। उनके मंत्रों का जाप करें और सरस्वती माता के स्तोत्र एवं चालीसा का पाठ करना न भूलें। इस दिन अपनी किताबों की भी पूजा अवश्य करनी चाहिए।

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सरस्वती पूजा की विधि

सरस्वती पूजा करते समय सबसे पहले सरस्वती माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखना चाहिए. इसके बाद कलश स्थापित करके गणेश जी तथा नवग्रह की विधिवत पूजा करनी चाहिए. इसके बाद माता सरस्वती की पूजा करें. सरस्वती माता की पूजा करते समय उन्हें सबसे पहले आचमन एवं स्नान कराएं. इसके बाद माता को फूल एवं माला चढ़ाएं. सरस्वती माता को सिन्दुर एवं अन्य श्रृंगार की वस्तुएं भी अर्पित करनी चाहिए. बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता के चरणों पर गुलाल भी अर्पित किया जाता है.
देवी सरस्वती स्वेत वस्त्र धारण करती हैं अत: उन्हें स्वेत वस्त्र पहनाएं. सरस्वती पूजन के अवसर पर माता सरस्वती को पीले रंग का फल चढ़ाएं. प्रसाद के रूप में मौसमी फलों के अलावा बूंदिया अर्पित करना चाहिए. इस दिन सरस्वती माता को मालपुए एवं खीर का भी भोग लगाया जाता है.

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सरस्वती माता का हवन विधि

सरस्वती पूजा करने बाद सरस्वती माता के नाम से हवन करना चाहिए. हवन के लिए हवन कुण्ड अथवा भूमि पर सवा हाथ चारों तरफ नापकर एक निशान बना लेना चाहिए. इसे कुशा से साफ करके गंगा जल छिड़क कर पवित्र करने के बाद. आम की छोटी-छोटी लकडि़यों को अच्छी तरह बिछा लें और इस पर अग्नि प्रजज्वलित करें. हवन करते समय गणेश जी, नवग्र के नाम से हवन करें. इसके बाद सरस्वती माता के नाम से “ओम श्री सरस्वतयै नम: स्वहा” इस मंत्र से 108 बार हवन करना चाहिए. हवन के बाद सरस्वती माता की आरती करें और हवन का भभूत लगाएं.

सरस्वती विसर्जन

माघ शुक्ल पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा के बाद षष्टी तिथि को सुबह माता सरस्वती की पूजा करने के बाद उनका विसर्जन कर देना चाहिए।
सरस्वती वन्दना

सरस्वती या कुन्देन्दु देवी सरस्वती को समर्पित बहुत प्रसिद्ध स्तुति है जो सरस्वती स्तोत्रम का एक अंश है। इस सरस्वती स्तुति का पाठ वसन्त पञ्चमी के पावन दिन पर सरस्वती पूजा के दौरान किया जाता है।
स्तुति घ्यान या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥। घर पर पूजन।
1. इस दिन ब्रह्म महुर्त में स्नान आदि करके पीताम्बर या पीले वस्त्र पहनें।
2. माद्य शुक्ल पंचमी को उत्तम वेदी पर वस्त्र बिछाकर अक्षत(चावल) से अष्टदल कमल बनाएं।
3. इसके अग्र भाग में श्रीगणेश जी को स्थापित करें।
4. वहीं पृष्ठ भाग में बसंत स्थापित करें। बसंत यानि जौ व गेहूं की बाली के पुंज को जल से भरे कलश में डंठल सहित रखकर सजाया जाता है, उसे ही बसंत कहते हैं।
5. इसके बाद सबसे पहले गणेशजी का पूजन करें और फिर पृष्ठ भाग में स्थापित बसंत पुंज के द्वारा रति व कामदेव का पूजन करें। इसके लिए पुंज पर अबीर,केसर व रंगीन पुष्पों के माध्यम से बसंत जैसा माहौल बना लें।

 

सरस्वती वाणी एवं ज्ञान की देवी है. ज्ञान को संसार में सभी चीजों से श्रेष्ठ कहा गया है. इस आधार पर देवी सरस्वती सभी से श्रेष्ठ हैं. कहा जाता है कि जहां सरस्वती का वास होता है वहां लक्ष्मी एवं काली माता भी विराजमान रहती है।

सरस्वती पूजा के दिन यानी माघ शुक्ल पंचमी के दिन सभी शिक्षण संस्थानों में शिक्षक एवं छात्रगण सरस्वती माता की पूजा एवं अर्चना करते हैं. सरस्वती माता कला की भी देवी मानी जाती हैं अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग भी माता सरस्वती की विधिवत पूजा करते हैं. छात्रगण सरस्वती माता के साथ-साथ पुस्तक, कापी एवं कलम की पूजा करते हैं. संगीतकार वाद्ययंत्रों की, चित्रकार अपनी तूलिका की पूजा करते हैं.

सृष्टि के निर्माण के समय सबसे पहले महालक्ष्मी देवी प्रकट हुईं. इन्होंने भगवान शिव, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का आह्वान किया. जब ये तीनों देव उपस्थित हुए. देवी महालक्ष्मी ने तब तीनों देवों से अपने-अपने गुण के अनुसार देवियों को प्रकट करने का अनुरोध किया. भगवान शिव ने तमोगुण से महाकली को प्रकट किया, भगवान विष्णु ने रजोगुण से देवी लक्ष्मी को तथा ब्रह्मा जी ने सत्वगुण से देवी सरस्वती का आह्वान किया है।
महत्व। ——– इस दिवस अबुझ मुहूर्त रहता है अर्थात बिना पंचांग देखे ही कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ कर सकते है। ज्योतिष में पांचवी राशि के अधिष्ठाता भगवान सूर्यनारायण होते है। इसलिए वसंत पंचमी अज्ञान का नाश करके प्रकाश की ओर ले जाती है। इसलिए सभी कार्य इस दिन शुभ होते है इस दिन विद्यार्थी, शिक्षक एवं अन्य सभी देवी सरस्वती का पूजन करें। गरीब छात्रों को पुस्तक, पेन, आदि विद्या उपयोगी वस्तु का दान करें। इस दिन शक्तियों के पुनर्जागरण होता है। बसंत पंचमी के दिन सबसे अधिक विवाह होते एवं इस दिन गृह प्रवेश, वाहन क्रय, भवन निर्माण प्रारंभ, विद्यारंभ ग्रहण करना, अनुबंध करना, आभुषण क्रय करना व अन्य कोई भी शुभ एवं मांगलिक कार्य सफल होते है।वसंत पंचमी की विशेषताएं… – माघमाह:-इस महिने को भगवान विष्णु का स्वरूप बताया है।- शुक्ल पक्ष:-इस समय चन्द्रमा अत्यंत प्रबल रहता है।- गुप्त नवरात्री इस समय गुप्त नवरात्र होते है।जो साधना पूजा हेतु उत्तम है।-सिद्धी,साधना,गुप्तसाधनाके लिए मुख्य समय- उत्तरायण सूर्यः-देवताओं का दिन इस समय सूर्य देव पृथ्वी के निकट रहते है।। ये समय- वसंत ऋतु:-समस्त ऋतुओं की राजा इसे ऋतुराज वसंत कहते है । ब्रह्मपुराण के अनुसार देवी सरस्वती इस दिन ब्रह्माजी के मानस से अवतीर्ण हुई थी।। इस अवसर पर विधार्थी मत्र जाप करे इसी को सारस्वत मत्र कहते है।तो सफलता प्राप्त होती है। सरस्वती मंत्र: ऊं ऐं सरस्वत्यै नमः।

 

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