भगवान गणेश कैसे बने प्रथम पूज्य ?क्यों होती है सबसे पहले पूजा ? क्यों बढ़ रही बृद्धाश्रमो की सँख्या ?
Why is Lord Ganesha worshiped first?:आज के दौर मे बच्चे माता पिता का आदर नहीं करते और माता पिता को ही भला बुरा सुना देते हैं उन्हें भगवान श्री गणेश जी से प्रेरणा लेना चाहिए,वैसे तो देश भर में भगवान श्री गणेश को मानने वाले लोग हैं,साथ ही प्रतिवर्ष गणेश जी की प्रतिमाओं को रखकर 10 दिन तक उनकी आराधना की जाती है और अंनत चौदस के दिन धूमधाम से उनकी विदाई की जाती है।लेकिन क्या भगवान गणेश जी को मानने वाले लोग उनके आदर्शों को मानते हैं ?आज ये सवाल इसलिए है क्योंकि जिस तरह से देशभर में बृद्धाश्रम की सँख्या बढ़ रही हैं, इससे साफ जाहिर है कि एक माता पिता अपने 4 बच्चों को पाल सकते हैं उनकी हर जिद और जरूरत पूरी करते हैं ,लेकिन माता पिता के बूढे होने पर क्या 4 बच्चे अपने माता पिता की सेवा कर पा रहे हैं ?उन्हें भगवान गणेश जी से जरूर प्रेरणा लेना चाहिए ।
क्यों कहलाये भगवान गणेश प्रथम पूज्य ?
एक बार भगवान शंकर के यहाँ उनके दोनों पुत्रों में होड़ लगी कि, कौन बड़ा ?
निर्णय लेने के लिए दोनों गये शिव-पार्वती के पास। शिव-पार्वती ने कहाः जो संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके पहले पहुँचेगा, उसी का बड़प्पन माना जाएगा।
➠ कार्तिकेय तुरन्त अपने वाहन मयूर पर निकल गये पृथ्वी की परिक्रमा करने। गणपति जी चुपके-से एकांत में चले गये। थोड़ी देर शांत होकर उपाय खोजा तो झट से उन्हें उपाय मिल गया।
➠ फिर गणपति जी आये शिव-पार्वती के पास। माता-पिता का हाथ पकड़ कर दोनों को ऊँचे आसन पर बिठाया, पत्र-पुष्प से उनके श्रीचरणों की पूजा की और प्रदक्षिणा करने लगे।
➠ एक चक्कर पूरा हुआ तो प्रणाम किया…. दूसरा चक्कर लगाकर प्रणाम किया…. इस प्रकार माता-पिता की सात प्रदक्षिणा कर ली।
➠ शिव-पार्वती ने पूछाः “वत्स! ये प्रदक्षिणाएँ क्यों की ?” गणपति जीः “सर्वतीर्थमयी माता… सर्वदेवमय पिता… सारी पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से जो पुण्य होता है, वही पुण्य माता की प्रदक्षिणा करने से हो जाता है, यह शास्त्रवचन है। पिता का पूजन करने से सब देवताओं का पूजन हो जाता है। पिता देवस्वरूप हैं। अतः आपकी परिक्रमा करके मैंने संपूर्ण पृथ्वी की सात परिक्रमाएँ कर ली हैं।”
तब से गणपति जी प्रथम पूज्य हो गये।
✯ शिव-पुराण में आता हैः
पित्रोश्च पूजनं कृत्वा प्रक्रान्तिं च करोति यः।
तस्य वै पृथिवीजन्यफलं भवति निश्चितम्।।
अपहाय गृहे यो वै पितरौ तीर्थमाव्रजेत।
तस्य पापं तथा प्रोक्तं हनने च तयोर्यथा।।
पुत्रस्य य महत्तीर्थं पित्रोश्चरणपंकजम्।
अन्यतीर्थं तु दूरे वै गत्वा सम्प्राप्यते पुनः।।
इदं संनिहितं तीर्थं सुलभं धर्मसाधनम्।
पुत्रस्य च स्त्रियाश्चैव तीर्थं गेहे सुशोभनम्।।
➠ जो पुत्र माता-पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे पृथ्वी-परिक्रमाजनित फल सुलभ हो जाता है। जो माता-पिता को घर पर छोड़ कर तीर्थयात्रा के लिए जाता है, वह माता-पिता की हत्या से मिलने वाले पाप का भागी होता है क्योंकि पुत्र के लिए माता-पिता के चरण-सरोज ही महान तीर्थ हैं।
➠ अन्य तीर्थ तो दूर जाने पर प्राप्त होते हैं परंतु धर्म का साधनभूत यह तीर्थ तो पास में ही सुलभ है। पुत्र के लिए (माता-पिता) और स्त्री के लिए (पति) सुंदर तीर्थ घर में ही विद्यमान हैं।
साभार बाल संस्कार केंद्र,संत श्री आसारामजी आश्रम