क्या है ऋषि पंचमी से जुड़ी व्रत कथा ?क्यों जरूरी होता है ऋषि पंचमी का व्रत

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ऋषि पंचमी के व्रत से वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, अत्रि, गौतम और कश्यप इन सप्त ऋषियों के साथ अरुंधति का भी पूजन किया जाता है। नारी-शक्ति को समझना चाहिए कि जैसे पुरुष अपना प्रयत्न, अभ्यास करके ब्रह्मर्षि, देवर्षि, राजर्षि हो सकता है ऐसे हम भी अभ्यास करें तो ऐसी ऊंचाइयों को छू सकती है।

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क्या है ऋषि पंचमी से जुड़ी व्रत कथा 

कथा आती है कि उत्तंक ब्राह्मण और उनकी पत्नी सुशीला घर संसार चलाते थे। उनको एक पुत्र व पुत्री हुई । पुत्री बड़ी हुई उसका विवाह हो गया । पुत्र गुरुकुल से पढ़कर आया। इतने में दुर्भाग्य से पति का स्वर्गवास हो गया । कुटुम्ब में उसके पालन की कोई व्यवस्था नहीं थी तो विधवा पुत्री मायके चली आई।संसार के दुख और कल्मष को मिटाने का उपाय है कि एकांत में अपनी वृति भगवान में लगाकर संसार से पार होने का पुरुषार्थ करना ये बात वह ब्राह्मण जानते थे। तो ब्राह्मण- ब्राह्मणी ने निर्णय लिया कि पुत्र घर-संसार को संभाले और हम तीनों गंगा-किनारे सात्विक वातावरण में छोटा-मोटा आश्रम बनाकर भगवद-भजन करें और दूसरों को कराने का दैवी कार्य हाथ में लें ताकि अपना जीवन धन्य हो जाये। पुत्र सहमत हो गया। ब्राह्मण, ब्राह्मणी और उनकी बेटी गंगा-किनारे आश्रम बनाकर ध्यान-भजन करने लगे। उनके पास आस-पास के कुछ ब्रह्मचारी बच्चे पढ़ने आते थे। गुरुपुत्री भी आश्रम की खूब सेवा करती थी। एक दोपहर को वो सेवा करते-करते थक गई तो वृक्ष के नीचे जो चबूतरा था वहाँ जरा सा बैठी तो झट-से नींद आ गई। सोकर उठी तो उसके शरीर में फोड़े हो गये थे और उनमें कीड़े खदबदाने लगे थे।सुशीला ने पुत्री की स्थिति देखी तो वह मूर्छित होकर गिर पड़ी। विद्यार्थी बच्चों ने पानी छिड़का तो उसकी मूर्छा टूटी, सावधान हुई और पति के पास भागी। पति-पत्नी दोनों ने पुत्री को अपने आश्रम की एक छोटी-सी कुटिया में ले गये तथा उसकी सेवा शुश्रूषा करने लगे।

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क्यो पड़ गए कीड़े ?

ब्राह्मण ने सोचा कि ‘पुत्री ने ऐसा तो कोई पाप किया नहीं कि इसके शरीर में कीड़े पड जाये !’ एकाएक ऐसी विपति आ गयी। इसके पीछे कोई दैवी कोप या इसके प्रारब्ध का फल होगा।’ब्राह्मण अभ्यासयोग से युक्त हुए थे। अपने मन-इन्द्रियों को वश करके अन्तरतम चेतना में प्रवेश करने की उनमें शक्ति आ गयी थी। अंतर्मुख होकर बच्ची का पूर्वजन्म देखा तो पिछले ७वें जन्म में वह उच्छृंखल स्वभाव की थी। झूठ-कपट करती और खान-पान में मनमानी करती थी। साथ ही वह मासिक धर्म में भी खाद्य पदार्थों को छूती और परोसती थी स्पर्शास्पर्श से नहीं बचती थी।

क्यों लगता है दोष ?

मासिक धर्म में महिलाएं यदि खाद्य- पदार्थ बनाये और परोसे तो जो लोग वो खाद्य-पदार्थ खाते है वे तेजोहीन हो जाते है, उनकी बुद्धि का तेज, याददाश्त, मानुषी तेज, प्रभाव जो होना चाहिए वह नहीं रहता। तो उसको दूसरों को प्रभावशून्य करने का पाप लगा था। लोग उसको बोलते थे कि ‘मासिक धर्म में हो तो अलग से रहना चाहिए और कभी गलती से भी किसी ऋषि का दर्शन हो गया हो या किसी भजनानंदी के नजदीक चली गयी हो अथवा दूर से उनकी निगाह पड़ गयी हो तो दोष लगता है।’ उस जन्म में उसने यह बात नहीं मानी। उल्टे उस दोष-निवृति के लिए जो महिलाएं ऋषि-पंचमी का व्रत करती थी उनका वह मजाक उड़ाती और खुद ऋषि-पंचमी का अनादर करती थी।कर्म करना मनुष्य के वश में है और फल कब और कैसे मिलेगा यह विधाता के हाथ में है। आज तुम कर्म करो तो उसका फल अभी मिले, एक साल बाद मिले, १० साल या १० जन्म अथवा १० हजार जन्मों के बाद मिले, इसमें आप कुछ नहीं कर सकते हैं, यह नियति के हाथ में है। जब तक मनुष्य कर्ता होकर कर्म करता है, जब तक आत्मज्ञान का प्रसाद नहीं मिला ‘अकर्तृत्वं अभोक्तृत्वम्…’ की अवस्था में नहीं गया तब तक कर्म का फल भोगना पड़ता है।ब्राह्मण ने पुत्री को थोड़ी शिक्षा-दीक्षा दी और ऋषि-पंचमी का व्रत कराया, जिससे उसके दोष का नाश हुआ और वह स्वस्थ हो गयी।

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