साहित्य की दार्शनिक वैचारिकी चरित्र निर्माण की कुंजी है “: प्रो. अंजना विजन मुंबई
भगवानदीन साहू परासिया छिंदवाड़ा: श्री श्री लक्ष्मीनारायण शासकीय पेंचवैली पी. जी. कॉलेज परासिया में “व्यक्तित्व विकास एवं चरित्र निर्माण में साहित्य की भूमिका” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार में आमुख वक्ता के रूप में बोलते हुए आर. डी. नेशनल कॉलेज बांद्रा मुंबई की हिन्दी की विभागाध्यक्ष डॉ. अंजना विजन ने कहा कि साहित्य दर्शन की व्यक्तित्व विकास एवं चरित्र निर्माण में महती भूमिका होती है क्योंकि यह मानवीय विवशताओं के निवारण में औषधि की तरह काम करता है। साहित्य अमर्यादित आचरण से उत्पन्न निर्बल चरित्र को जीवन के यथार्थ से रूबरू कराता है। सभी बहानेबाज स्वयं के आत्मविश्वास को छोड़ भाग्य में भरोसा कर धार्मिक घोषणा करते हैं। इंसानी संभावनाओं की तलाश ईश्वर बनने तक है।
पी. जी. कॉलेज छिंदवाड़ा के प्राचार्य प्रो. लक्ष्मीचंद ने कहा कि साहित्य की जीवन प्रबंधन की वैचारिकी ने सदियों से इंसानियत निर्माण के सूत्र सुझाए हैं, और सिखाया है कि हमारा सादगी भरा आचरण हमारी सृजनात्मक ऊर्जा की बर्बादी से बचाता है। प्रमुख वक्ता शासकीय महाविद्यालय चांद के प्राचार्य प्रो. अमर सिंह ने कहा कि साहित्य अमानवीयता को उजागर कर कराहती वेदना में करूणा का संचार करता है। साहित्य दर्शन में खुद को संवारने में ही खुदा बनने की तरकीब छिपी होती है। साहित्य विपत्तियों के विद्यालय से सीखने9 का अचूक हथियार होता है। हमारे सभी परिणाम पूर्व में भुगते अंजाम के प्रतिफल होते हैं। विशिष्ट वक्ता पी. जी. कॉलेज छिंदवाड़ा की हिन्दी की प्राध्यापिका प्रो. टीकमणि पटवारी ने अपने अंदाज में कहा कि साहित्य सशक्त मनुष्य निर्माण के दुर्लभ मार्गदर्शी मूल्यों के खजाने हमें प्रदान करता है। समग्रता में जिए जीवन में अफसोस के लिए कोई जगह नहीं होती है। जीवन में सपनों के तट जितने सुनहरे होते हैं, सच के किनारे उतने ही गहरे होते हैं। डॉ. सत्या सोनी ने कहा कि योग साहित्य में समस्त यौगिक क्रियाएं श्वशन नियंत्रण से आंतरिक अंगों की मालिश कर प्राण ऊर्जा का संचार करती हैं। योग अस्थिर बुद्धि का नियमन कर उपकर्णीय विलासिता के निर्बल करने वाले अभिशापों से हमें बचाता है। प्राचार्य डॉ. ए. पी. द्विवेदी ने कहा कि व्यक्तित्व विकास वक्त के पैकेज के अनुसार विकास की मुख्यधारा में शामिल होने की चेतना है, जिससे विकृत मानसिकता से उत्पन्न विकारों का स्थाई निदान संभव होता है। वेबीनार संयोजिका डॉ. अमिता ब्यौहार ने कहा कि जिन्हें असफलता को सफलता की सीढ़ी बनाना आता है, उन्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है। कोई भी वक्त बेवक्त नहीं होता है। हर वक्त का एक फॉर्मेट होता है। अप्रयुक्त वक्त को वापस लाने की हैसियत स्वयं खुदा में भी नहीं होती है। बुरा वक्त नकली चकाचौंध से बाहर निकाल हमें असलियत से सामना कराता है। वेबीनार उपसंयोजिका डॉ. ख्याति सोनी ने कहा कि जीतने वाले कभी भी घावों की गिनती नहीं करते हैं, बल्कि अवरोधों को ताकत में बदलने का माद्दा रखते हैं। डॉ. अशोक बारसिया ने कहा कि हौसलों के सामने हादसों की कोई औलाद नहीं होती है। अनंत वैचारिक शुचिता, शाश्वत मूल्य और उत्साही आत्मविश्वास पुख्ता व्यक्तित्व विकास करते हैं। वेबीनार में महाविद्यालय के अभी अधिकारियों व कर्मचारियों का भरपूर सहयोग रहा।
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