जानें कब है होलिका दहन, राशि अनुसार इस बार अग्नि में करें इन चीज़ों को अर्पित

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ज्योतिषचार्य निधिराज त्रिपाठी :होलिका दहन 2024: तिथि व मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, साल 2024 में होलिका दहन के लिए 24 मार्च की रात 11 बजकर 15 मिनट से देर रात 12 बजकर 23 मिनट तक का शुभ मुहूर्त है। शास्त्रों के अनुसार सूर्यास्त के बाद ही होलिका की पूजा कर उसे जलाया जाता है। होलिका दहन के दिन भद्रा भी लग रही है। यह भद्रा 24 मार्च की शाम 06 बजकर 49 मिनट से शुरू होगी और यह समाप्त रात 08 बजकर 09 मिनट पर होगी। होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं रहेगा। ऐसे में पूजा में कोई अवरोध नहीं आएगा।

होलिका दहन मुहूर्त : 24 मार्च की रात 11 बजकर 15 मिनट से 12 बजकर 23 मिनट तक

अवधि : 1 घंटे 7 मिनट

भद्रा पुंछ : 06 बजकर 49 मिनट से 08 बजकर 09 मिनट तक

भद्रा मुखा : 08 बजकर 09 मिनट से 10 बजकर 22 मिनट तक

होलिका दहन मनाने के पीछे कारण
हिन्दू धर्म में होलिका दहन के पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, इसी दिन राक्षस राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने प्रह्लाद को अग्नि में जलाने की कोशिश की थी लेकिन भगवान विष्णु ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा करके उस अग्नि में होलिका को जलाकर राख कर दिया था। ऐसे में, इस दिन अग्नि देव की पूजा का विधान है और उस अग्नि में अनाज और जौ, मिष्ठान आदि डाला जाता है। होलिका दहन की राख को बेहद ही पवित्र और शुद्ध माना गया है। लोग होलिका दहन के बाद इसकी राख को अपने घर लाते हैं और उसे अपने मंदिर या कोई पवित्र स्थान पर रखते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और हर तरह की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात में होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के बाद अगले दिन लोग रंगों वाली होली खेलते हैं और एक-दूसरे को रंग लगाते हैं।

कैसे मनाई जाती है होलिका
जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि होलिका दहन हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर प्रदोष काल में किया जाता है। होलिका का दहन किसी खुले स्थान में किया जाता है। इसके लिए लकड़ियां इकट्ठा की जाती है और उसमें होलिका और भक्त प्रह्लाद को शुद्ध गोबर से बनाकर स्थापित किया जाता है जिसे गुलारी या बड़कुल्ला के नाम से जाना जाता है। इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल बनाई जाती है और उसमें चार मालाएं, जो मौली, फूल, गुलाल, और गोबर से बने खिलौनों से बनाकर रखे जाते हैं। इसके बाद होलिका दहन के शुभ मुहूर्त में पूजा शुरू की जाती है। इसके लिए गोबर से बनी ढाल पर एक माला पितरों के नाम समर्पित करनी चाहिए, दूसरी माला हनुमान जी को अर्पित करनी चाहिए, तीसरी शीतला माता और चौथी माला घर परिवार के लिए रखी जाती है।

होलिका दहन का महत्व
सनातन धर्म में होलिका दहन का विशेष महत्व है। ऐसे में, इस दिन लोग अपने घर और जीवन में सुख शांति और समृद्धि के लिए होलिका की पूजा करते हैं। मान्यता है कि होलिका दहन करने से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा आती है। होलिका दहन की तैयारियां कई दिनों पहले से ही शुरू हो जाती है। लोग लकड़ियां, गोबर के उपले आदि इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं और उसके बाद होलिका वाले दिन इसे जलाकर बुराई पर अच्छाई के जीत का जश्न मनाते हैं। होलिका दहन की लपटें बहुत लाभकारी होती हैं। माना जाता है कि होलिका दहन की अग्नि में हर समस्या व मुश्किलें जलकर दूर हो जाती है। इसके अलावा, लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और देवी-देवताओं की विशेष कृपा बनी रहती हैं।

होलिका दहन पूजन विधि व सामग्री
होलिका दहन वाले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और इस दिन के व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद होलिका दहन करने वाली जगह को अच्छे से साफ करें और वहां पर सूखी लकड़ी, गोबर के उपले आदि सामग्री इकट्ठा कर लें।
फिर घर के ही मंदिर में ही मिट्टी से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बना लें।
शाम को दोबारा पूजा करें और इसके लिए सबसे पहले थाली तैयार करें।
होलिका दहन की पूजा के लिए एक थाली में रोली, माला, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, गुड़, कच्चे सूत का धागा, खिल-बतासे नारियल एवं पंच फल आदि रखें।
फिर पूरी श्रद्धा से होलिका के चारों ओर 7, 11 या 21 बार परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत के धागे को लपेट दें।
इसके बाद होलिका जलाएं और सभी सामग्रियों को एक-एक करके अग्नि में डालें और फिर जल से अर्घ्य दें। इसके पश्चात होलिका दहन के बाद पंचफल और चीनी से बने खिलौने आदि को आहुति के रूप में समर्पित करें।
अंत में होलिका में गुलाल डालें।
इसके बाद जब होलिका की अग्नि शांत हो जाए तो इसकी राख अपने घर में या फिर मंदिर या कहीं साफ-सुथरी पवित्र जगह पर रखें।

 


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