कचरा घर में तब्दील हुए प्राचीन जलस्त्रोत
Ancient water source in crisis:सिहोरा नगरीय क्षेत्रों में गर्मी आते ही पेयजल की किल्लत शुरू हो जाती है। कभी बोर खराब हो जाते हैं, तो कभी नलों की टोंटी सूख जाती हैं। पूर्व में नागरिकों ने अपने घरों में पेयजल आपूर्ति के लिए कुओं का निर्माण कराया था। साथ ही नगर प्रशासन ने दर्जनों कुओं का निर्माण सार्वजनिक रूप से पेयजल आपूर्ति के लिए कराया था।लेकिन लोगों की उपेक्षा व नगरीय प्रशासन के ध्यान नहीं देने के कारण इन कुओं का अस्तित्व ही संकट में आ गया है। यदि इन कुओं को सुरक्षित रखा गया होता तो आज लगातार गिरते जल स्तर की समस्या से न जूझना पड़ता। शहर में सरकारी कुओं की पर्याप्त देखभाल नहीं होने के कारण उनका अस्तित्व संकट में आ गया है।
*कचरा घर में तब्दील*
वर्षा जल को सहेज कर ग्रीष्म ऋतु में भु जल स्तर को सामान्य रखने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कुऐ अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहे हैं।नगर पालिका क्षेत्र में सफाई के अभाव में पूर्व में बनाए गए कुएं कचरे से पट रहे है और अनुपयोगी हो रहे हैं। जिससे शहर के जलसंकट की समस्या उत्पन्न होने की आशंका गहरा गई है। नगरीय क्षेत्रों में नगर पालिका द्वारा पेयजल आपूर्ति होनेे के कारण शहरी क्षेत्रों में कुओं की उपयोगिता कम होने लगी है और लोग इनकी साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देते। लगातार गिरते भूजल स्तर के कारण पेयजल व्यवस्था चरमरा जाती है, तब इन कुओं की उपयोगिता सामने आने लगती है
*वाटर रिचार्जिंग के स्रोत उपेक्षा के शिकार*
जल संरचना की उपेक्षा एवं भू माफियाओं की काली छाया के चलते नगर के अनेक प्राचीन जल स्रोत जहां नेस्तनाबूद हो चुके हैं वही शेष बची हुई धरोहर को संरक्षित करने में प्रशासन की बेरुखी का परिणाम लगातार गिरते भु जल स्तर के रूप में देखने को मिल रहा है। नगर की ताल तलैयो में अवाद सीमेंट कंक्रीट के जंगलों ने वाटर रिचार्जिंग पूरी तरह समाप्त कर दी है ।
*मैना कुंआ में लगा गोबर का ढेर*
नगर का प्राचीन जल स्रोत एवं वार्ड 8 तथा 10 की पेयजल आपूर्ति करने वाला नगर का मैंना कुआं गोबर संग्रहित करने का अड्डा बन गया है विदित हो उक्त कुएं से नगर पालिका द्वारा मोटर के माध्यम से पेयजल आपूर्ति की जाती थी लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा एवं स्थानीय लोगों के द्वारा जल स्रोतों की की जा रही दुर्दशा के कारण प्राचीन जल स्रोत दम तोड़ रहे हैं।
*वर्षा जल सहेजने नहीं हो रहे प्रयास*
एक और शासन वर्षा जल को सहेजने करोड़ों रुपए की लागत से गांव गांव अमृतसरोवर बनवा रही है वही दो से तीन दशक पूर्व तक सरकारी आंकड़ों में जल क्षेत्र के रूप में दर्ज रकबो में सीमेंट कंक्रीट के जंगल तैयार हो गए। वही कुऐ कचरा घर में तब्दील हो गए।वर्षा जल को सहेजने ना तो तालाब गहरीकरण का कार्य कराया गया और ना ही नगर की शान कहलाने वाले कुआ की साफ सफाई की गई परिणाम स्वरूप बर्षा जल के व्यर्थ वह जाने से भु जलस्तर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है।
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