लाभ का धंधा बनी प्राकृतिक खेती,तीन से चार लाख रुपये की हो रही अतिरिक्त आय

इस ख़बर को शेयर करें

 

 

जबलपुर, वर्तमान समय में जब खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, तब प्राकृतिक खेती एक स्वच्छ, सस्ता और टिकाऊ विकल्प बनकर उभर रही है। यह खेती का ऐसा तरीका है जिसमें किसान प्रकृति के खिलाफ नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ मिलकर काम करता है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों एवं बाहरी संसाधनों का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि इसके विकल्प के रूप में गौमूत्र, गोबर, पत्तियां, जैविक अपशिष्ट आदि स्थानीय संसाधनों का उपयोग किया जाता है।

 

तीन एकड़ में प्राकृतिक खेती

उप संचालक कृषि डॉ एस के निगम ने यह जानकारी देते हुये बताया कि सिहोरा विकासखण्ड के खितौला बाजार के किसान राकेश पहारिया इसका एक अच्छा उदाहरण है। उन्होंने बताया कि श्री पहारिया द्वारा पिछले तीन-चार वर्षों से अपनी चार एकड़ कृषि भूमि में से तीन एकड़ में प्राकृतिक खेती की जा रही है। प्राकृतिक खेती अपनाने से उनके खेत में न केवल मृदा के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है, बल्कि रासायनिक खाद और कीटनाशक उपयोग ना करने से खेती की लागत में भी कमी आई है।उप संचालक कृषि के मुताबिक कृषक राकेश पहारिया प्राकृतिक खेती अपनाकर विभिन्न प्रकार की मौसमी सब्जियां, फूलों एवं फलों का उत्पादन कर रहे हैं तथा धान, मूंग एवं उड़द आदि की फसल भी ले रहे हैं। इससे उन्हें प्रतिवर्ष तीन से चार लाख रुपये की अतिरिक्त आय भी हो रही है। उन्होंने आधा एकड़ क्षेत्र में गौशाला भी बना रखी है। हरिओम नाम की इस गौशाला 40 से 50 पशु हैं। गौशाला से निकले गोबर और गौमूत्र से वे विभिन्न प्रकार के कीटनाशक बनाते हैं। पिछले दिनों जैविक खेती से जुड़े श्री ताराचंद्र बेलजी द्वारा कृषक उनकी हरिओम गौशाला और जैविक फार्म का अवलोकन किया गया एवं उनके कार्यों को सराहा गया। श्री पहारिया स्थानीय किसानों एवं समूहों को प्रशिक्षण भी देते हैं। उप संचालक कृषि डॉ निगम ने बताया कि कृषक श्री पहारिया बीजामृत अंतर्गत बीजों को गौमूत्र एवं नीम की पत्तियों के मिश्रण से उपचारित करते हैं, जिससे फसलों का बीमारियों से बचाव होता है। उन्होंने बताया कि जीवामृत गोबर, गौमूत्र, गुड, बेसन और मिट्टी से बना घोल उपयोग कर मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या बढ़ाई जा सकती है। मिट्टी को सूखने से बचाने के लिये पौधों के नीचे सूखी पत्तियों, घास आदि का बिछावन किया जाता है, जिसे मल्चिंग कहते हैं। मिट्टी में नमी और हवा का सही संतुलन बनाए रखने से फसलों की बढ़वार अच्छी होती है।

इंडिया पोल खोल को आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु इस QR कोड को किसी भी UPI ऐप्प से स्कैन करें। अथवा "Donate Now" पर टच/क्लिक करें। 

Click Here >> Donate Now

इंडिया पोल खोल के YouTube Channel को Subscribe करने के लिए इस YouTube आइकन पर टच/Click करें।

इंडिया पोल खोल के WhatsApp Channel को फॉलो करने के लिए इस WhatsApp आइकन पर टच/Click करें।

Google News पर इंडिया पोल खोल को Follow करने के लिए इस GoogleNews आइकन पर टच/Click करें।


इस ख़बर को शेयर करें