बिना कहे जो मित्र का दुःख समझे वही सच्चा मित्र,मित्रता मैं नही होनी चाहिए छल-कपट की भावना

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सुग्रीव यादव स्लीमनाबाद : मित्र के कहे बिना जो मित्र के चेहरे का भाव पढक़र मित्र के दु:ख को जान ले एवं उसकी मदद करे वही सच्चा मित्र है। जैसे तीनों लोकों के स्वामी द्वारिकाधीश भगवान श्रीकृष्ण ने गरीब ब्राह्मण मित्र सुदामा को बिना जताए, बिना बताए उनकी मदद की क्योंकि वो जानते थे कि गरीब सुदामा संकोच एवं स्वाभिमान के कारण कुछ नहीं मांगेंगे। इसके साथ ही पूछने पर उनके सम्मान को ठेस भी लगेगी परंतु उनके पैरों के छालों को देखकर भगवान ने मित्र की आर्थिक स्थिति का आंकलन कर लिया और रातों-रात सुदामा की गरीब कुटिया को महल में परिवर्तित कर दिया। उक्त विचार जगदीश धाम माँ काली मंदिर खिरहनी मैं चल रहे सप्ताह ज्ञान यज्ञ में कथा वाचक आचार्य सतीश महाराज ने कथा के अंतिम दिन सोमवार को व्यक्त किए। कृष्ण- सुदामा प्रसंग को सुनाते हुए उन्होंने कहा कि संकट एवं जरूरत के समय मित्र को अहसान जताए बिना, मित्र के स्वाभिमान की रक्षा के साथ की गयी मदद सच्ची मित्रता की पहचान है। कृष्ण एवं सुदामा की दोस्ती मित्रता का आदर्श उदाहरण है जो ये संदेश देता है कि मित्रता अमीरी-गरीबी का भेद नहीं करती, बुरे समय में साथ रहे दोस्तों को अच्छा समय आने पर नजरंदाज नहीं करना चाहिए। मित्र द्वारा लाई गई भेंट को उसके मूल्य के आधार पर आंकलन न करके उसमें छिपे प्रेम को देखना चाहिए जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा द्वारा लाये गए तीन मुटठी चावलों के स्वाद में 56 भोग से भी ज्यादा आनंद पाया और तीन मुठ्ठी चावल के बदले सुदामा की दरिद्रता दूर कर दी। जैसे स्वयं द्वारिकाधीश तीनों लोकों के स्वामी जिस सुदामा के मित्र हों वो गरीब हो ही नहीं सकता, वैसे ही श्रीकृष्ण जैसा सच्चा मित्र होने पर कोई दु:खी नहीं हो सकता है।सायकालीन आरती कर प्रसाद वितरण किया गया!
सप्ताह ज्ञान यज्ञ के समापन पर मंगलवार को विशाल भंडारा आयोजित होगा ।


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