दिनभर चला फाग गीतों का दौर,जमकर थिरके लोग, जगह जगह आयोजित हुए होली मिलन समारोह

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स्लीमनाबाद- रंगों का 5 दिवसीय त्यौहार  होलिका दहन के साथ शुरू हो गया सोमवार को धुलेंडी पर्व धूमधाम से मनाया गया। दिनभर रंग, अबीर लगाने के साथ एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं देने का और फाग गाकर मनोरंजन करने का सिलसिला चलता रहा।खासतौर से ग्रामीण इलाकों में फाग की रंगत देखने को मिली। रविवार की रात शुभ मुहुर्त में शहर से लेकर गांव तक होलिका दहन किया गया। होली को लेकर सोमवार व मंगलवार को दिन भर फाग गीतों का दौर चलता रहा। कई जगह सामूहिक आयोजन किये गए। वहीं होली के त्योहार को लेकर दिन भर बाजार में रौनक बनी रही।
नगर में होली पर्व को लेकर तरह-तरह के हर्बल रंग गुलाल और कई तरह की पिचकारियों से दुकानें सजी रहीं। होली को लेकर बाजार में रौनक देखने को मिली। पिचकारी विक्रेताओं ने बताया कि इस बार कार्टून कैरेक्टर वाली पिचकारियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। साथ ही बच्चों को कार्टून कैरेक्टर वाली पिचकारियां भा रही हैं। उनका कहना है कि इस बार पिचकारियों और रंगो पर मंहगाई का असर भी देखने को मिला।

बाजार में दिखा महंगाई का असर-

इस वर्ष हर्बल रंग, गुलालों व पिचकारियों में दाम में दस से बीस फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। दुकानदारों ने बताया कि बाजार में 10 रुपए से लेकर पांच सौ रुपए तक की पिचकारियां मौजूद हैं। बाजार में सुगंधित गुलालों की भी मांग खूब हो रही है। वहीं लोग स्प्रे की भी डिमांड कर रहे हैं, जो 50 रूपए से 200 रूपए की कीमत तक के उपलब्ध हैं। इसमें झाग वाले स्प्रे, सुगंधित स्प्रे व चमकीले स्प्रे की मांग ज्यादा है

जगह जगह हुआ फाग उत्सव-सोमवार को धुलेंडी पर्व पर बहोरीबंद विकासखण्ड क्षेत्र मे जगह जगह होली मिलन समारोह का भव्य आयोजन किया गया। ग्राम पंचायत धरवारा मैं दोपहर से देर शाम तक ढ़ोल, नगररिया, मंजीरे की धुन पर फाग गीतों की प्रस्तुति दी।उपसरपंच अमित गर्ग ने बताया की होली का त्यौहार ही एक ऐसा त्यौहार है जिसमें पुराने गिले शिकवे को भुला, रंग अबीर गुलाल लगाते हुए गले लगाया जाता है। धीरे-धीरे हमारी लोक संस्कृति विलुप्त होती जा रही है। कुछ वर्ष पूर्व तक संगीतमय होली का कार्यक्रम एक माह तक लगातार चलता था। जिसमें सभी लोग एक दूसरे से मिलते थे और आपसी प्रेम सद्भाव में बृद्धि होती थी। वहीं वर्तमान में ढ़ोल, नगरियॉ, मंजीरे की धुन पर फगुआ के मनमोहक गीत विलुप्त होते जा रहे हैं। इन गीतो के माध्यम से फगुआ गाने वाले अपने ईष्ट राधा-कृष्ण, माता सीता और प्रभु राम एवं भोला बाबा के नाम से फागुआ में शब्दो से भक्ति की गंगा बहाते थे। वहीं वर्तमान में डीजे की धुन पर बिना अर्थ के गाने सुनाई पड़ते हैं।

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