रामराज्य के सही मायने क्या ?
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अयोध्या में भव्य-दिव्य राम मंदिर बन जाने के बाद तो राम कथा युगों-युगों तक अजर-अमर रहनी ही है। लेकिन ज्यादातर लोगों के मन-मष्तिष्क में राम कथा का धार्मिक और आध्यत्मिक पक्ष ही ज्यादा रचा-बसा है। बड़ों की हर आज्ञा का पालन करना, निर्बल, असहाय और वंचित लोगों की मदद करना, उनसे मित्रता करना, हर हाल में उसे निभाना, सामाजिक समरसता कायम करना, हर परिस्थिति में धैर्य बनाए रखना, पाप और पापी का विनाश करना, आदर्श बेटा, आदर्श पति, आदर्श भाई, आदर्श नागरिक, आदर्श राजा जैसे राम के मर्यादित जीवन मूल्यों की ही चर्चा आम तौर पर होती है।
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रामराज्य’ शब्द युग्म भी बच्चा-बच्चा जानता है,लेकिन इसके सही मायने क्या हैं यानी रामराज्य की आदर्श व्यवस्थाएं क्या थीं, रामराज्य का मतलब क्या, कैसा राज्य, यह चर्चा का गहन-गंभीर विषय कम ही बनता है। एक लाइन में कहें, तो रामराज्य से सब यही अर्थ निकालते हैं कि राजा राम के राज में सभी लोग सुखी थे यानी कोई दुखी नहीं था। ये सही है, लेकिन ब्रह्मांड की सर्वाधिक जीवंत संज्ञा राम का राज्य व्यवस्था को लेकर पूरा कॉन्सेप्ट क्या था, इसे लेकर आम लोगों और लोकतांत्रिक भारत गणराज्य में राष्ट्र-राज्य का शासन चलाने वालों में जागरूकता जरूर आनी चाहिए। ‘शिक्षा में रामत्व’ या कहें ‘रामत्व में शिक्षा’ अभियान में इस बात की बहुत जरूरत है कि रामराज्य का पूरा कॉन्सेप्ट प्राइमरी से लेकर हायर स्टडीज तक विभिन्न स्तरों पर नागरिक शास्त्र (सिविक्स), समाज शात्र (सोशियोलॉजी) और सामान्य ज्ञान (जनरल स्टडीज) के पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए।
रामायण महाग्रंथ
वाल्मीकि के रामायण महाग्रंथ में 100वां सर्ग रामराज्य के कॉन्सेप्ट पर ही केंद्रित है। पिता की आज्ञा मान कर राम, सीता और लक्ष्मण समेत वनवास के लिए चले जाते हैं। ननिहाल में रह रहे भरत और शत्रुघ्न को बिना कुछ बताए आनन-फानन में अयोध्या बुलाया जाता है। भरत का राजतिलक होना है। अयोध्या पहुंचने पर जब भरत को हालात की जानकारी मिलती है, तो वे मां कैकेयी को बहुत कोसते हैं। राजतिलक न करा कर राजपरिवार और सेना समेत राम को अयोध्या वापस लाने के इरादे से उनके पास जंगल में पहुंचते हैं। आपसी अभिवादन के बाद राम, भरत से अयोध्या के शासन को लेकर कई सवाल पूछते हैं। असल में उन सवालों में ही रामराज्य का पूरा कॉन्सेप्ट समाहित है।रामायण के 100वें सर्ग की शुरुआत भरत से राम के प्रश्नों से होती है। पहले राम पिता दशरथ और अयोध्या के बारे में जानकारी मांगते हैं। फिर नौंवे श्लोक से भरत के जरिये लोक को रामराज्य का संदेश देना शुरू करते हैं। वे पूछते हैं कि क्या तुम सदा धर्म में तत्पर रहनेवाले, विद्वान्, ब्रह्मवेत्ता और इक्ष्वाकु कुल के आचार्य महातेजस्वी वसिष्ठजी की यथावत पूजा करते हो? संदेश साफ है कि शिक्षा देने वाला गुरु सर्वप्रथम पूज्य है। फिर वे रोजमर्रा की सनातन परंपरा में होने वाले कर्मकांड समय पर हो रहे हैं या नहीं, इस बारे में पूछते हैं।वे भरत से पूछते हैं कि क्या तुम देवताओं, पितरों, भृत्यों, गुरुजनों, पिता के समान आदरणीय वृद्धों, वैद्यों और ब्राह्मणों (कर्म से) का सम्मान करते हो? यानी रामराज्य में ऐसा होना चाहिए। राम पूछते हैं, “क्या मंत्ररहित बाणों, मंत्रसहित अस्त्रों का इस्तेमाल जानने वालों और अर्थशास्त्र के अच्छे जानकारों का अयोध्या में सम्मान किया जा रहा है?” यानी अच्छे सुरक्षा इस्तेमाल और अच्छी इकोनॉमी राम की प्राथमिकता है। राम भरत से पूछते हैं, “क्या उन्होंने खुद जैसे शूरवीर, शास्त्रों की जानकारी रखने वाले, इंद्रियों को काबू में रखने वाले और बाहरी हलचलों से ही मन की बात समझ लेने वाले योग्य व्यक्तियों को ही मंत्री बनाया है?”
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