ज्ञानमार्ग अहंकार पैदा करता है जबकि भक्तिमार्ग व्यक्ति को नम्र बनाता है,पंडित इंद्रमणि त्रिपाठी

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जबलपुर:सिहोरा-बाबा लाल सिहोरा स्थित शिव मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा का छठा दिन कथा प्रेमी श्रोताओं के लिए यादगार बन गया। इस दिन श्रोताओं को भगवान की महारास लीला पर श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह पर। भक्ति गण व संपूर्ण जनमानस भाव विभोर हो नाच उठा। सभी रूक्मणी कृष्ण विवाह के साक्षी भी बने। महारास लीला से शुरूहुई रूक्मणी के साथ उनके परिणय बंधन (विवाह) तक पहुंची। इस बीच भगवान के मथुरा गमन और कंस उद्धार जैसे महत्वपूर्ण प्रसंग भी आए। गोपिकाओं के युगल और प्रणय गीतों की बृज शैली में नृत्य प्रस्तुति से ने द्वापर युग के इन प्रसंगों को जीवन्त कर दिया।
मथुरा प्रवेश के साथ कृष्ण और गोपिकाओं के विरह वियोग का मार्मिक वर्णन सुनकर श्रोता भावुक हो उठे। कथाप्रवचन ने पण्डित इंद्रमणि त्रिपाठी ने समझाया कि उद्धव के निर्गुण ब्रह्म को गोपियों ने किस तरह अपने लिए अनुपयोगी सिद्ध कर उद्धव को निरुत्तर कर दिया।
पूरे प्रसंग से व्यासगादी पर विराजित पंडित इंद्रमणि त्रिपाठी ने समझाया कि ज्ञानमार्ग अहंकार पैदा करता है जबकि भक्तिमार्ग व्यक्ति को नम्र बनाता है। ज्ञान से भगवान की प्राप्ति मिश्री की तरह कड़ी है तो भक्ति रसगुल्ले की तरह सरस और नरम है। रुक्मिणी कृष्ण विवाह कथा समझाने के लिए रुक्मणी के कृष्णवरण की कथा से शिव के लिए पार्वती की तपस्या और दूल्हे बने शिशुपाल की बारात आने पर रुक्मणी के अम्बा पूजन कथा से सीता के गिरिजापूजन प्रसंग श्रोताओं को सहज कथा के छठे दिन कृष्ण रुक्मणी विवाह की सुंदर झांकी ने सबका मन मोह लिया। भगवान के विवाह के साक्षी बने श्रोता दर्शकों ने जी भरकर इस मौके पर नाच गाकर खुशियां मनाई। इससे पहले श्रोताओं ने बालकृष्ण की लीलाओं का आनंद लिया। नन्हे कृष्ण के हाथों अनेक असूरों की उद्धार कथा,गोपियों के यमुना नहाना और चीरहरण कथा के रोचक वृतान्त का आध्यात्मिक महत्व समझते हुए कथाप्रवचन कर्ता पंडित इंद्रमणि त्रिपाठी ने जीव के संपूर्ण समर्पण से ही परमात्मा की प्राप्ति संभव बताया,कथा श्रवण और भक्ति में डूबे लोगों को सर्वाधिक सौभाग्यशाली बताया।


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