कभी चंग की थाप पर जुटती थी होलियारों की टोली, आधुनिकता के दौर मे सिमटती जा रही है सदियों पुरानी फाग मनाने की लोक संस्कृति

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स्लीमनाबाद (सुग्रीव यादव ): रंगों का पर्व होली के अब महज चंद दिनों का समय बचा है।24 मार्च को होलिका दहन व 25 मार्च को धुलेडी मनाई जाएगी।लेकिन होली को पर्व को लेकर अब पहले जैसी लोक संस्कृति देखने को नही मिलती।
जहां दो दशक पहले तक शहर, कस्बों और गांव की गली मोहल्लों में होली से 15 दिन पहले फाग उत्सव शुरू हो जाता था। फाग के गीतों से माहौल सराबोर रहता था।लेकिन बदलते दौर के साथ फाग उत्सव के दिन की तरह फाग मनाने की लोक संस्कृति भी सिमट गई है। टीवी, मोबाइल के दौर में सदियों पुरानी फाग मनाने की लोक संस्कृति अब धीरे धीरे सिमटने लगी है।हालांकि समय के साथ अब इसका स्वरूप बदला है। होली से पहले फाग उत्सव मनाने की परंपरा रही है, फाग उत्सव में चंग की थाप पर लोक गीत गाए जाते हैं। इन गीतों में देवर भाभी की नोक झोंक और प्रेम को गीत के माध्यम से गया जाता है।वहीं राधा कृष्ण की ओर से खेली गई होली का गुणगान किया जाता है। फाग के गीत लोक संस्कृति का हिस्सा हैं, वर्तमान में फाग उत्सव के बड़े-बड़े आयोजन किए जाते हैं।लेकिन वर्तमान समय में टीवी और मोबाइल ने फाग की प्राचीन लोक संस्कृति की परंपरा को काफी पीछे धकेल दिया है. अब चंद ही इलाकों में देर शाम चंग की आवाज और फाग के गीत सुनाई देते हैं।होली के रसियो ने कहा कि फाग उत्सव में 15 दिन तक हर रोज देर शाम चंग बजाने और फाग के गीत गाने के अलावा गैर नृत्य किया जाता था।

होली का डंडा रोपने की की परंपरा भी सिमटी-

ग्राम कोहका के 80 वर्षीय वृद्ध भारत यादव,75 वर्षीय महेश यादव,75 वर्षीय राजकुमार यादव,80 वर्षीय बुल्ली यादव ने बताया कि एक ओर जहां होली दहन से 15 दिन पहले ग्रामीण अंचलों मैं होली का डंडा रोपने की तैयारियां शुरू हो जाती थी। हालांकि, अब अधिकांश जगह यह डंडा होलिका दहन के दो_तीन पहले रोप कर खानापूर्ति की जाती है।होली जैसा महत्वपूर्ण पर्व पहले महीने भर तक मनाया जाता था, अब महज दो दिन का रह गया है।होली के उत्सव का पहला काम होली का डंडा  गाडऩा होता है। होली का डंडा एक प्रकार का पौधा होता है, जिसे सेम, रतन ज्योत का पौधा कहते है।पं.रमाकांत पौराणिक ने बताया कि होली का पर्व भक्त प्रह्लाद का प्रतीक माना जाता है। होली के दिन इसके चारो ओर छड़ी के ढेर लगा दिए जाते है। महिलाएं दिन में होलिका की पूजा करती है। रात्रि में होलिका दहन कर दिया जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि को होलिका दहन किया जाता है।


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