मां स्कंदमाता का स्वरूप

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ज्योतिषचार्य निधिराज त्रिपाठी,सबसे पहले बात करें मां का स्वरूप कैसा है तो कहा जाता है की देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं होती है जिसमें से देवी ने दो हाथों में कमल, एक हाथ में कार्तिकेय भगवान को लिया हुआ है और एक हाथ अभय मुद्रा में है। देवी स्कंदमाता कमल पर भी विराजमान होती है जिसके चलते इनका एक नाम पद्मासना भी है।

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कहा जाता है की माता की पूजा करने से भक्तों को सुख और ऐश्वर्या की प्राप्ति होती है। जो कोई भी भक्त देवी की सच्चे मन से पूजा करता है उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा देवी के स्वरूप को अग्नि देवी के रूप में भी जाना जाता है।

मां स्कंदमाता की पूजा का ज्योतिषीय संदर्भ
अब बात करें देवी की पूजा के ज्योतिषीय संदर्भ की तो ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की देवी स्कंदमाता बुध ग्रह को नियंत्रित करती हैं। ऐसे में अगर किसी की कुंडली में बुध ग्रह कमजोर अवस्था में है या पीड़ित अवस्था में है तो देवी की पूजा करने से उन्हें बुध ग्रह से संबंधित शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं साथ ही बुध ग्रह के दुष्प्रभाव जीवन में कम होने लगते हैं।
मां स्कंदमाता की पूजा महत्व
बात करें मां स्कंदमाता की पूजा के से मिलने वाले महत्व की तो, कहा जाता है की मां दुर्गा के सभी नौ रूपों में स्कंदमाता स्वरूप सबसे ममतामई है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति की बुद्धि का विकास होता है और ज्ञान की असीमित प्राप्ति होती है।

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इसके अलावा कहा जाता है कि जो कोई भी भक्त संतान हीन है या संतान के अभिलाषा रखते हैं वह अगर सच्चे मन से नवरात्रि के पांचवें दिन का व्रत करें, मां की पूजा पाठ करें तो उनकी सूनी गोद जल्दी भर जाती है। इसके अलावा मां अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करती हैं उनके जीवन से कष्ट को दूर करती हैं।

मां स्कंदमाता को अवश्य लगाएँ ये भोग
अब बात करें मां के प्रिय भोग की तो कहा जाता है कि माँ के इस स्वरूप को पीले रंग की वस्तुएं सबसे ज्यादा प्यारी होती है। ऐसे में इस दिन आप माता को पीले रंग के फल, पीले रंग के मिठाई भोग के रूप में अर्पित कर सकते हैं। इसके अलावा आप चाहे तो केसर की खीर का भोग भी माँ को लगा सकते हैं। अगर आप विद्या या फिर बुद्धि के लिए मां की पूजा कर रहे हैं तो इस दिन मां को पांच हरी इलायची अवश्य अर्पित करें। साथ ही लौंग का एक जोड़ा भी चढ़ा दे।

देवी स्कंदमाता का पूजा मंत्र
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

 

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