गाँवों मे आज भी पुरानी परम्पराओं से होती है दीपावली की तैयारियां

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सुग्रीव यादव स्लीमनाबाद- समय के साथ भले ही रहन-सहन और पहनावे में बदलाव हुआ हो, लेकिन बहोरीबंद विकासखंड के गांवों में आज भी पुरानी परंपराओं के अनुसार ही दीपावली की तैयारियां की जाती हैं। पॉजीटिव वातावरण के लिए दीवार की पुताई पोतनी और छुई मिट्टी से की जाती है। बलाओं को टालने के लिए घर की चौखट पर लोहे की कील ठुकवाई जाती है।तीज त्योहार की सदियों से चली आ रहीं परंपराएं अब शहर में विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। इन्हीं में से एक है दीपावली पर घर की चौखट पर कील ठुकवाने की परंपरा शहर को छोड़ गांव में आज भी जारी है। इसके अलावा दीवार पर बनाई जाने वाली लक्ष्मी विष्णु की प्रतीक मानी जाने वाली सुराती की परंपरा को भी गांव में लोग भूले नहीं हैं।
कोहका गाँव के निवासी महेश यादव, राजकुमार यादव, सुभाष यादव ने बताया कि दीपावली के त्योहार की कई लोक मान्यताएं और परंपराएं हैं। इन्हीं में से एक घर की चौखट पर लोहे की कील ठुकवाने की है। इसके पीछे मान्यता थी कि दीपावली के दिन घर के दरवाजे के मुख्य द्धार पर लोहे की कील ठुकवाने से साल भर बलाएं घर में प्रवेश नहीं कर पाती।
इसके अलावा इससे जुड़ी दूसरी मान्यता यह भी थी कि कील ठुकवाना दीपावली पर लोहे को सम्मान देना है। लोहे से कृषि यंत्रों का निर्माण होता है। दिवाली के बाद रबी की फसल की बुवाई शुरू होती है, जिसमें ये यंत्र काम आते हैं।
पंडित रमाकांत पौराणिक ने बताया कि दीपावली की पूजा के लिए दीवार पर सुराती बनाने की परंपरा भी अब बीते कल की बात होती जा रही है। नई पीढ़ी इसे बनाना भी नहीं जानती है। ये केवल पुरानी पीढ़ी तक सिमट कर रह गई है।बसेहड़ी ग्राम निवासी सुदर्शन आदिवासी, रामसेवक आदिवासी, सुदर्शन आदिवासी बताया कि सुराती में ज्यामिति आकार की दो आकृति बनाई जाती है, जिनमें 16 घर की लक्ष्मी की आकृति होती है, जो महिला के सोलह श्रृंगार दर्शाती है। नौ घर की भगवान विष्णु की आकृति नवग्रह का प्रतीक होती है। सुराती के साथ गणेश, गाय, बछड़ा व धन के प्रतीक सात घड़ों के चित्र भी बनाए जाने की भी परंपरा है, लेकिन अब ये गांव में भी बहुत कम ही नजर आती है।

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