सिस्टम पर भारी निजी स्कूल,शिक्षा की दुकान पर चल रही लूट 

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जबलपुर/ सिहोरा:किताबों और ड्रेस को लेकर प्रशासन ने व्हाट्सएप नंबर जारी कर दिए हैं ,लेकिन फीस और स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता सहित स्कूल के बाहर वाहन पार्किंग स्कूल का भवन कैसा है इसको लेकर न तो सरकार न ही प्रशासन को फिकर है अब ऐसे में अभिभाववक और छात्र परेशान हैं।

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ये होतीं  हैं समस्याएं

नवीन शिक्षण सत्र के प्रारंभ होते ही शिक्षा की दुकान प्राइवेट स्कूलों द्वारा अभिभावकों की जेब पर खुलेआम कैंची चलना प्रारंभ कर दिया है। निजी स्कूलों की प्रवेश प्रक्रिया तो केवल वानगी है इसके बाद पूरे साल अभिभावकों का आर्थिक शोषण किया जाना किसी से छिपा नहीं है नगर में बगैर प्रशिक्षित स्टाफ के संचालित अंग्रेजी माध्यम की शैक्षणिक संस्थाओं के लुभावने मकड़जाल में फंसकर एक और जहां अभिभावक आर्थिक शोषण का शिकार हो रहा है वहीं दूसरी तरफ नोनिहालों का भविष्य भी अंधकारमय प्रतीत हो रहा है। निजी स्कूल मनमानी फीस वसूली कर रहे हैं। एडमीशन फीस, टर्मिनल फीस, यूनिफार्म और किताब-कापी के रूप में वसूली जारी है। अभिभावक अपनी जेबें ढ़ीली करने को मजबूर हैं।स्कूलों ने किताबों से लेकर स्कूल ड्रेस तक की दुकानें फिक्स कर रखी हैं, उन दुकानों के अलावा और कहीं बच्चे के कोर्स की किताबें मिलती ही नहीं हैं। ऐसे में अभिभावक परेशान होकर उन्हीं दुकानों से मजबूर होकर किताबें कॉपियां और स्कूल डे्रस खरीदते हैं, जहां स्कूलों का कमीशन बंधा होता है, ऐसे में कलेक्टर ने सख्त आदेश जारी किए हैं।

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15 से 20 हजार तक शुल्क*
प्राप्त जानकारी के अनुसार नगर की जिन अंग्रेजी माध्यम शिक्षण संस्थानों द्वारा प्रवेश शुल्क,भवन शुल्क, मासिक शुल्क वाहन शुल्क सहित अनेक प्रकार की शुल्क जोड़कर नोनिहालों का विद्यालय में एडमिशन किया जा रहा है उनमें प्रशिक्षित स्टाफ तक मौजूद नहीं है भारी भरकम फीस वसूलने के बाद भी वर्ष भर जरूरतमंद बेरोजगारों का शोषण करते हुए अप्रशिक्षित शिक्षकों से शैक्षणिक कार्य कराया जाता है।

*किताबों के नाम पर खुलेआम लूट*

स्कूलों की शह पर पुस्तक विक्रेता बेलगाम हो गए हैं। कॉपी व कवर सहित अन्य सामग्री नहीं लेने पर दुकानदार किताब देने से इंकार कर रहे हैं। इसलिए किताबों का पूरा सेट लेने को अभिभावक मजबूर हैं। स्कूलों द्वारा तय दुकानों पर किताबें मिलना कमीशनखोरी में संलिप्ताा को दर्शाता है।रसूखदार स्कूल संचालकों के आगे स्थानीय प्रशासन व शिक्षा अधिकारी भी चुप्पी साधकर बैठे हैं। नगर में सचांलित हो रही दुकानों पर पूछताछ करने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं। यदि इन दुकानों पर बारीकी से पूछताछ की जाए तो रसूखदार स्कूल संचालकों की मनमानी की करतूत सामने आ जाएगी। यह जानकर हैरानी होगी कि प्राइवेट पब्लिकेशन की पुस्तकों में दुकानदार एक भी रुपए की छूट नहीं दे रहे हैं।

*बस्ते के वजन भारी

प्रदेश सरकार की स्कूल बैग पॉलिसी के अनुसार कक्षा अनुसार बस्ते का वजन निर्धारित किया गया है जिसे सभी निजी, शासकीय और अनुदान प्राप्त स्कूलों को इसका पालन करना होता है। पॉलिसी के अनुसार कक्षावार बस्तों का वजन तय होता जिसके अनुसार वहीं कक्षा पहली, दूसरी के लिए 1.6 से 2.2 किलोग्राम तक,तीसरी, चौथी, पांचवी तक के लिए 1.7 से 2.5 किलोग्राम तक,छठवी, सातवी तक के लिए 2.0 से 3.0 तक आठवीं के लिए 2.5 से 4.0 नौवीं, दसवी 2.5 से 4.5 किलो ग्राम वजन निर्धारित किया गया है लेकिन स्कूल संचालकों द्वारा प्रवेश के समय अभिभावकों को काफी किताबों की दी जाने वाली सूची अनुसार क्रय की गई सामग्री का वजन 10 से 15 किलोग्राम से भी अधिक होता है।

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