श्रीजी की निकली शोभायात्रा, जियो और जीने दो का दिया गया संदेश
सुग्रीव यादव स्लीमनाबाद : जैन समाज के पर्वाधिराज महापर्व दसलक्षण पर्व भक्तिभाव से मनाया गया।पर्युषण पर्व के तहत दस दिन से तप,त्याग व साधना के साथ आयोजन हुए।प्रतिदिन भगवान का अभिषेक ,शांतिधारा पूजन प्रवचन किये गए।धर्म की वाणी का रसास्वादन श्रावक व श्राविकाओं द्वारा किया गया।जिसका बुधवार को समापन हुआ।इस दौरान भगवान वासुपूज्य का मोक्ष कल्याणक मनाया गया।स्लीमनाबाद स्थित पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर मे इस अवसर पर अभिषेक, पूजन, शांति धारा की गई। इसके पश्चात निर्वाण लाडू समर्पित किया गया।
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श्रीजी की निकाली गई पालकी शोभायात्रा
बुधवार को महापर्व के आखरी दिन जैन समाज ने श्रीजी को पालकी में विराजमान कर उनकी नगर में पारंपरिक हर्षोल्लास एवं धूमधाम से शोभा यात्रा निकाली ।शोभायात्रा के माध्यम से जियो ओर जीने दो,सत्य व अहिंसा का संदेश दिया गया। बेंडबाजो के साथ जगह जगह श्रीजी की आरती उतारकर धर्म प्रभावना समाजजन कर रहे थे । युवक जैन धर्म की ध्वजा लेकर चल रहे थे । महिलाये पिंक कलर की साड़ी, वस्त्र व पुरुष सफेद वस्त्र व गले मे दुपटटा पहने हुए थे ।
पालकी शोभायात्रा पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर से प्रारंभ हो कर स्लीमनाबाद तिराहे से होकर पुनः जैन पहुँची। जहाँ श्रीजी को पांडुक शिला पर विराजमान कर पूजन अर्चना कर श्रीजी के अभिषेक के लिए कलशों की बोलियां व आरती एवं श्रीमाल की बोलिया लगाई गई । उन बोलियों को पुण्याजर्न श्रावको ने बोली लगाकर पुण्याजर्न का लाभ लिया।
इस दौरान पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर मे धार्मिक विभिन्न प्रतियोगिताये आयोजित की गई ।जिसमे सफल प्रतियोगियो को सम्मानित भी किया गया।
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जीवन रूपी सरिता को पार करने नौका के समान है दसलक्षण पर्व –
पर्यूषण पर्व के इन दस दिनों में स्लीमनाबाद स्थित पाश्र्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर मे सांगानेर से पधारे विद्वान पंडित आनंद भैया के प्रवचन सुनने का अवसर संपूर्ण समाज को प्राप्त हुआ। उन्होने दस लक्षण पर्व अर्थात उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम अर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन, उत्तम ब्रम्हचर्य आदि दस धर्मों के पालन करने की महिमा बताते हुए कहा कि मनुष्य के जीवन को सार्थक बनाने के लिए इन दस धर्मो का पालन करना जीवन रूपी सरिता को पार करने के लिए नौका के समान है!
चारित्र प्रधान भारतीय संस्कृति है। जिसमें चरण की बाद में, आचरण की पूजा प्रथम होती है। जिसका आचरण का आईना जितना साफ और निर्मल रहता है, उसकी पूजा एवं गुणानुवाद सदा सदा होता है। जितेन्द्रिय, संयमी व्यक्ति को स्त्री तृण के समान होती है, और इच्छा रहित निर्लोभी मनुष्यों के लिए सारा संसार ही तिनके के समान दिखता है। जिसे अपनी आत्मा से राग होता है, वही उत्तम ब्रम्हचर्य धर्म के पास होता है, वहीं उत्तम साधक माना जाता है, हम भी ऐसे धर्म को पास रखें।इस दौरान सकल दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष श्रेयांश जैन, निर्मलचंद्र जैन,सतीशचंद जैन,प्रदीप जैन,संजय जैन,आकेश जैन, धन्नू जैन, आनंद जैन, मयूर जैन,बबला जैन, आनंद जैन, मयंक जैन, सुधीर जैन, पप्पू जैन, डी के जैन,सहित सकल जैन समाज की उपस्थिति रही!
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