
एक दूसरे को कजलियां देकर बाटी खुशी, छोटो ने बड़ो से पाया आशीष
सुग्रीव यादव स्लीमनाबाद : रक्षाबंधन के अगले दिन मनाया जाने वाला आपसी प्रेम,स्नेह व भाईचारे के प्रतीक कजलिया पर्व मंगलवार को हर्षोल्लास के साथ स्लीमनाबाद तहसील क्षेत्र मे मनाया गया।इसके लिए घरों में करीब एक सप्ताह पूर्व से ही कजलियां बोई गई। मंगलवार की शाम को कजलियां को ताल-तलैयों व भगवान को भेंट कर निकाला गया।
घरो मैं बोई गई कजलियां
स्लीमनाबाद स्थित हरिदास ब्रजधाम कोहका मैं परम्परानुसार कजलियां मेला आयोजित हुआ।जहां घरो मैं बोई गई कजलियां महिलाओं के द्वारा लाई गई।
सुख समृद्धि की कामना
जहां पूजा अर्चना कर हरियाली ,सुख समृद्धि की कामना की गई।इसके बाद सरोवर मैं जाकर कजलियां को स्वच्छ किया गया।इसके बाद मंदिरों,देवालयों मैं भगवान को चढ़ाया गया।
देर शाम लोग सज धजकर नए वस्त्र धारण कर इस त्यौहार का आनंद उठाते देखे गए।
ग्रामीणों में खासा उत्साह
बच्चों मैं भी इस पर्व को लेकर खासा उत्साह देखा गया।
यह त्यौहार उन बहनों के लिए भी बहुत खास होता है जो सावन मैं ससुराल से अपने मायके आती है।कजलियां त्यौहार के दौरान वे अपनी पुरानी सखी -सहेलियों ओर मोहल्ले की अन्य महिलाओं से मुलाकात होती है।संध्या कालीन घर-घर जाकर कजलियां देने का सिलसिला शुरू हुआ जो देर रात तक चलता रहा।
एक दूसरे को कजलियां भेंट
एक दूसरे को कजलियां भेंट की गई तो छोटो ने बड़ो से आशीष पाया।बड़े बुजुर्गों ने छोटो के कानों मैं कजलियां खोसकर आशीर्वाद दिया।गौरतलब है कि कभी यह पर्व बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता था।परन्तु आधुनिकता की दौड़ में इस पर्व की रौनक फीकी पड़ती जा रही है। हालांकि अभी भी ग्रामीण इलाकों यह परम्परा जीवंत है।क्योंकि रूठों को मनाने और नए दोस्त बनाने के लिए भी इस महोत्सव का विशेष महत्व माना जाता है।
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