इन लोगों को विशेष रूप से करनी चाहिए मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
*ज्योतिर्विद अंकशास्त्री और वास्तु विशेषज्ञ***ज्योतिर्विद निधिराज त्रिपाठी के अनुषार
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का ज्योतिषीय संदर्भ
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार बात करें तो मां ब्रह्मचारिणी की तो माँ को मंगल ग्रह से संबंधित माना जाता है। ऐसे में जिन जातकों की कुंडली में मंगल ग्रह कमजोर स्थिति में हो या पीड़ित अवस्था में हो उन्हें विशेष रूप से मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने की सलाह दी जाती है।
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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा महत्व
बात करें महत्व की तो मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर से आलस्य, अहंकार, लोभ, लालच, झूठ, स्वार्थ और ईर्ष्या जैसी गलत आदतें दूर होती हैं। इसके अलावा मां का स्मरण करने मात्र से व्यक्ति के अंदर एकाग्रता और स्थिरता बढ़ने लगती है। साथ ही व्यक्ति के बुद्धि, विवेक और धैर्य में वृद्धि होती है।
मां ब्रह्मचारिणी को अवश्य लगाएँ ये भोग
नवरात्रि के नौ दिनों में माता के नौ स्वरूपों के भोग का विशेष महत्व माना गया है। माता के अलग-अलग स्वरूप को अलग-अलग भोग वस्तुएं पसंद होती है। ऐसे में बात करें मां ब्रह्मचारिणी की तो इस दिन की पूजा के दौरान अर्थात नवरात्रि के दूसरे दिन की पूजा के दौरान मां को कमल और गुड़हल का फूल अवश्य अर्पित करें।
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इसके अलावा माता को चीनी और मिश्री भी बहुत पसंद है। ऐसे में ऐसा कोई भोग मां को अर्पित करें जिसमें चीनी और मिश्री हो। मुमकिन हो तो इस दिन पंचामृत का भोग अवश्य लगाएँ। इसके अलावा दूध या फिर दूध से बनी खाने की वस्तुएं भी माँ को बेहद प्रिय होती है। आप इसका भी भोग मां को अर्पित कर सकते हैं।
कहा जाता है की मां को पसंदीदा वस्तुओं का भोग लगाने से व्यक्ति को लंबी आयु का सौभाग्य प्राप्त होता है।
देवी ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र
“दधाना करपद्माभ्यं, अक्षमालाकमाली। देवी प्रसूदतु माई, ब्रह्मचार्यानुत्तमा ..”
“दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमंडलु। देवी प्रसीदतु माई, ब्रह्मचारिण्यानुत्तमा।।”
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नवरात्रि के दूसरे दिन अवश्य करें यह अचूक उपाय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार माना जाता है की मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा करने से व्यक्ति को कुंडली में मौजूद मंगल दोष से छुटकारा मिलता है। साथ ही मंगल दोष से होने वाली तमाम तरह की परेशानियां भी उसके जीवन से दूर होने लगती हैं। कुंडली में मंगल ग्रह मजबूत होता है तो व्यक्ति को भूमि, भवन, बल आदि का आशीर्वाद मिलता है। ऐसे में आप चाहे तो नवरात्रि के दूसरे दिन कुछ अचूक उपाय करके इस दिन का सर्वश्रेष्ठ लाभ अपने जीवन में प्राप्त कर सकते हैं।
नवरात्रि के दूसरे दिन आप मंदिर जाकर देवी पार्वती और भगवान शिव के ऊपर जल और फूल अर्पित करें। इसके बाद पंचोपचार विधि से इन दोनों का पूजन करें। पूजा करने के बाद मौली से शिव और पार्वती देवी का गठबंधन करें और शीघ्र विवाह होने की प्रार्थना करें।
अगर आपके वैवाहिक जीवन में किसी तरह की कोई परेशानी आ रही है तो इस दिन गौरी माता का पूजन अवश्य करें। इससे आपको लाभ अवश्य मिलेगा।
रामायण के अनुसार कहा जाता है की मां सीता ने भी विवाह से पहले गौरी माता की पूजा की थी और तभी उन्हें भगवान श्री राम उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए थे।
इसके अलावा अगर आप मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त करना चाहते हैं तो नवरात्रि के दूसरे दिन स्नान करने के बाद दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप अवश्य करें। इससे भी आपको मनचाहा वर प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है। मां ब्रह्मचारिणी के नाम का अर्थ होता है ब्रह्मा अर्थात तपस्या और चारणी का मतलब होता है आचरण अर्थात एक ऐसी देवी जिन्हें तपस्या की देवी माना गया है। यही वजह है की मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से व्यक्ति तप, त्याग, वैराग, सदाचार और संयम प्राप्त करता है।
इन लोगों को विशेष रूप से करनी चाहिए मां ब्रह्मचारिणी की पूजा
यूं तो मां दुर्गा के किसी भी स्वरूप और हर स्वरूप की पूजा हर कोई व्यक्ति कर सकता है लेकिन विशेष तौर पर जिन लोगों को बार-बार काम करने के बाद भी सफलता नहीं मिल रही हो, जिन्हें लालसाओं से मुक्ति पानी हो, उन्हें निश्चित रूप से मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आपको लालसाओं से मुक्ति मिलेगी और आपको आपकी कड़ी मेहनत का फल भी प्राप्त होगा। साथ ही जीवन में सफलता मिलेगी। इसके अलावा ऐसे व्यक्तियों को अपने जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा में भी वृद्धि देखने को मिलेगी।
मां ब्रह्मचारिणी से संबंधित पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनके स्वरूप को शैलपुत्री कहा गया था लेकिन मां ने तप के समय जिन नियमों का पालन किया, जिस तरह से कठिन जीवन जिया, जिस प्रकार शुद्ध और पवित्र आचरण अपनाया और तपस्या को अच्छी तरह से किया ऐसे में उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा।
कहा जाता है मूसलाधार वर्षा हो, तेज धूप हो, आंधी तूफान जैसे कठिन हालातो में भी माँ ब्रह्मचारिणी ने अपनी तपस्या नहीं छोड़ी थी। वो निश्चय के साथ तपस्या करती रही और तभी से इन्हें देवी ब्रह्मचारिणी का नाम दिया गया। कई वर्षों तक फल, शाक, और बेलपत्र खाने की वजह से उनका शरीर काफी कमजोर हो गया था। कहा जाता है आखिरकार माँ ब्रह्मचारिणी की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए थे और उनकी मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद दिया था और तभी भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था।
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