मनमर्जी के मालिक है सिहोरा सिविल अस्पताल के नर्स और डॉक्टर  

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Shops of doctors and nurses are open in front of the hospital:

जबलपुर जिले के सिहोरा के सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों को किसी का न भय है न ही समय की पाबंदी है सरकारी अस्पताल में सरकारी समय की किसी को परवाह नहीं है ,आलम यह है कि डॉक्टर अपनी मनमर्जी के मालिक है वो चाहें तो आधे घँटे से लेकर एक घँटे अस्पताल लेट पहुँचे लेकिन कोई कहने सुनने वाला धनी धोरी नहीं है,ताजा मामला 21 जनवरी 2025 मंगलवार की सुबह का है वैसे तो अस्पताल का समय सुबह 9 बजे से 2 बजे तक है लेकिन सुबह 9 से लेकर 9 बजकर 30 मिनट तक डॉक्टर अस्पताल नहीं पहुँचे औऱ यहाँ मरीज परेसान होते रहे,लोगों की मानें तो ये कोई एक दिन की बात नहीं है अक्सर कर यहां ऐसा होता रहता है ,यहां तक की पर्ची कटवाने खिड़की के बाहर मरीज इंतजार कर रहे थे की कब खिड़की खुलेगी  और पर्ची मिलेगी लेकिन पर्ची कट भी जाती तो क्या ?क्योंकि अस्पताल में डॉक्टर ही नहीँ थे,हाँ ये बात जरूर है की अस्पताल बंद करने के समय का डॉक्टर जरूर पालन करते हैं उसमें तो एक मिनट भी लेट नहीँ हो सकते।हो भी क्यों न हो चर्चा तो यह है की अस्पताल में डॉक्टरों का ज्यादातर ध्यान उनकी निजी दुकानों में रहता है, सरकारी अस्पताल में तो सिर्फ समय पूरा करने आते हैं बाकी तो अस्पताल के सामने नर्स सहित अधिकांश डॉक्टरों की निजी दुकानें संचालित हो रहीं डॉक्टरों का अस्पताल से ज्यादा निजी दुकानों का ज्यादा ध्यान रहता है, 

नर्स से लेकर डॉक्टर तक कि निजी दुकानें 

बताया जा रहा है की अस्पताल के सामने ही नर्स से लेकर सिविल अस्पताल में पदस्थ डॉक्टरों की निजी दुकानें संचालित हो रही हैं जहां पर डॉक्टर साहब या डॉक्टर मैडम बिल्कुल 1 मिनट की देर नही करते ,क्योंकि यहाँ पर उनको नगद फीस मिलती है इसीलिए यहां पर मरीजों का इलाज भी बड़े चाव से किया जाता है,लेकिन यही मरीज जब डॉक्टर की ड्यूटी के दौरान सरकारी अस्पताल पहुँचता है तो उसका इलाज उतना अच्छा नहीँ करते जितना इलाज ये अपनी निजी दुकानों में करते हैं, इसके पीछे की बजह अस्पताल में लगने वाली भीड़ भी बताई जाती है, लेकिन यही मरीज जब इनकी निजी दुकान पहुँचता है तो उसको बैठाकर बड़े प्यार से बीमारी पूछ्ते हुए यथासम्भव जांच बगैरा के लिए लिखकर बढ़िया से हर तरह से जांच पड़ताल कर दवाइयां लिखी जातीं है।

सरकार से लाखों का वेतन फिर भी कमी 

वैसे तो गरीब जनता के इलाज के लिए सरकार डॉक्टरों को  लाखो रुपये का वेतन सहित अन्य सुविधाएं  देती हैं लेकिन क्या वास्तव में सरकारी अस्पताल में बैठे डॉक्टर ईमानदारी से गरीब जनता का इलाज कर रहे हैं ? लाखों रुपये का वेतन लेकर भी डॉक्टर अस्पताल में समय पर नहीं पहुँचते हाँ ये बात अलग है की समय से बंद जरूर कर देते हैं,इतना ही नहीं अस्पताल के बाहर सभी डॉक्टरों के एजेंट बैठे हैं जो कि इनकी निजी दुकानों का प्रचार प्रसार करते हैं।

आदत सी पड़ गई है ,क्या यही है सुशासन ?

वैसे तो जनता की तो अब आदत सी पड़ गई है साहब गरीबों के पास फीस देने के पैसे नही होते तो मजबूर होकर इनका इंतजार ही कर लेते हैं, मध्यप्रदेश सरकार सुशासन को जमीनी स्तर पर लानी चाहती है। लेकिन सरकार का सुशासन कब तक जमीनी स्तर पर उतरेगा देखना होगा ?,

 

 

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