सिहोरा में रिलीज हुई एक न्याय और पुनर्वास की गाथा शार्ट फ़िल्म,जेलों की सलाखों के पीछे छिपे निर्दोषों के जीवन में आयी काली छाया

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जबलपुर :अक्सर कर जेलर की छवि बड़ी कठोर होती है जेलर और जेल का नाम सुनते ही अच्छे -अच्छों के पसीने छूट जाते हैं, लेकिन सिहोरा उपजेल के जेलर दिलीप नायक ऐसे नेक इंसान भी हैं जिनके दिल मे बेकसूरों को लेकर दया है,जेल व्यवस्था बनाने में कठोर दिखने वाले जेलर दिलीप नायक ने बेकसूरों को न्याय दिलाने और समाज और सरकार को संदेश देने के उद्देश्य से उन्होंने एक शार्ट फ़िल्म का निर्माण किया है।

क्या कहते हैं जेलर दिलीप नायक?

जेलर दिलीप नायक का कहना है की जेलों की सलाखों के पीछे छिपे निर्दोषों के जीवन में आयी काली छाया उनके न्याय,मानवाधिकार, पुनर्वास और अंतर्मन की पीड़ा को मैंने अपने व्यक्तिगत अनुभव और संवेदना से महसूस किया है।

पैर में फ्रेक्चर के बाद भी बनाई फ़िल्म 

पैर में फ्रेक्चर होने के बाद उनके पैर में दर्द तो था लेकिन सबसे बड़ा दर्द बेकसूरों को न्याय दिलाने का है जिसके सामने पैर का दर्द को दरकिनार रखकर बेड रेस्ट के दौरान ही उन्होंने AI तकनीक की सहायता से इमेज जेनेरेट कर इमेज-वीडियो एडिट कर मोबाइल पर ही फिल्म एक न्याय और पुनर्वास की गाथा) नामक शॉर्ट फ़िल्म का निर्माण किया है ,इस फ़िल्म के क्रिएटर जेलर दिलीप नायक जेलर सब जेल सिहोरा और प्रोड्यूसर उनकी पत्नी श्रीमती निधि दिलीप नायक हैं।सामाजिक जागरूकता के उद्देश्य से बनाई गई फ़िल्म का  विगत दिवस छोटू महाराज थियेटर,खितौला ,सिहोरा में ग्रांड रिलीज़ और विशेष प्रदर्शन किया गया।

 


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