गणेश प्रतिमाओं को तैयार करने मे जुटे मूर्तिकार, वाटर कलर व पीली मिट्टी से बना रहे हर्बल मूर्तियां
स्लीमनाबाद- जन्माष्टमी उत्सव के बाद अब गणेशोत्सव की तैयारियां शुरु हो गई हैं।7 सितंबर से प्रथम पूज्य देव विघ्नहर्ता का दस दिवसीय गणेशोत्सव पावन पर्व शुरू हो जाएगा।गणेश स्थापना के लिए गणेश मूर्तियों को तैयार करने मे मूर्तिकार जुटे हुए है।घरो में स्थापित करने के लिए गणेश की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाई जा रही हैं, जबकि पंड़ालों में स्थापित करने के लिए पांच फीट तक उंची प्रतिमाओं का निर्माण किया जा रहा है।मूर्तिकार गणेश जी की तरह-तरह की सुंदर, कलात्मक प्रतिमाएं बना रहे है।
विभिन्न आकार की प्रतिमाएं ले रही आकार-
मूर्तिकारो को इस बार विभिन्न आकार की गणेश प्रतिमाएं बनाने के ऑर्डर मिले है।स्लीमनाबाद मैं पिपरिया सहलावन से मूर्तिकार मनोज चक्रवर्ती ने बताया कि परंपरागत स्वरूप मैं प्रतिमाओं का निर्माण अधिक किया जा रहा है।मिट्टी की प्रतिमाओं की मांग अधिक है।इसलिए सिर्फ मिट्टी की ही गणेश प्रतिमाएं बनाई जा रही है।दक्षिणावर्ती सूंड वाले गणेश जी की प्रतिमाएं लोग अधिक बना रहे है।इस बार 501 रुपये से लेकर 5 हजार रुपये तक कीमत की मूर्तियां बन रही है।
तहसील क्षेत्र मे सैकड़ा भर में स्थानों पर विराजित होंगी प्रतिमाएं-
स्लीमनाबाद तहसील मुख्यालय में बड़े-छोटे मिलाकर 50 स्थानों पर पंडाल सजाए जाएंगे। इनमें 5 फीट से 10 फीट ऊंचाई की गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जाएंगी। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के पंडालों और घरों मैं भी गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जाएगी।दस दिनों तक लोग विघ्नहर्ता की भक्ति मैं लीन रहेंगे।
रात के समय धार्मिक आयोजन भी होंगे। जिनकी संबंधित समिति ने तैयारियां शुरू कर दी हैं।
हर्बल मूर्तियों की मांग-
भगवान गणेश की स्थापना की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है वैसे-वैसे मूर्तिकारों के पंडाल में तरह-तरह की प्रतिमाएं आकार ले रही हैं। मूर्ति निर्माण करने वाले कलाकार ओमप्रकाश चक्रवर्ती ने बताया कि, पड़ालों के साथ ही घर पर स्थापित करने के लिए हर्बल गणेश मूर्तियों की डिमांड़ ज्यादा रहती है। इस बार पर्यावरण व तालाबों के संरक्षण के लिए मूर्तिकार इस बार हर्बल रंगों से गणेश की मूर्तियों को रंग रहे हैं, ताकि तालाबों में हो रहे प्रदूषण को रोका जा सके। उन्होंने बताया कि गणेश अंक पुस्तक के मुताबिक पीली मिट्टी से निर्मित गणेश मूर्ति पूज्यनीय और शुभ है। इसलिए पीली मिट्टी से मूर्ति का निर्माण किया जा रहा है। मूर्ति को रंगने के लिए भी हर्बल कलर का इस्तेमाल कर रहे हैं। वाटर कलर साबूदाना से बनाए जा रहे हैं। साबूदाना के पानी का उपयोग मूर्तियों की साइनिंग के लिए भी किया जा रहा है।मूर्तिकारों ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजन के लिए गजानन या अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं मिट्टी से ही बनानी चाहिए।मिट्टी शुद्ध मानी जाती है।मिट्टी के अलावा अन्य किसी रसायन के उपयोग से बनी प्रतिमा अशुद्ध होती है।पर्यावरण विद भी पीओपी की मूर्तियों को पर्यावरण के लिए हानिकारक मानते है।
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