हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता है,संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए हुआ है,नरेंद्र सहगल

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नरेंद्र सहगल (वरिष्ठ लेखक व पत्रकार): ‘हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता है, संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए हुआ है।’ जब कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता का प्रस्ताव पारित किया तो डॉ. हेडगेवार ने संघ की सभी शाखाओं पर 26 जनवरी 1930 को सायंकाल 6 बजे स्वतंत्रता दिवस मनाने का आदेश दिया। सभी शाखाओं के स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश पहनकर नगरों में पथ संचलन निकाले और स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़कर भाग लेने की प्रतिज्ञा दोहराई। ध्यान दें कि संघ ऐसी पहली संस्था थी जिसने सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता का उद्देश्य रखा था। 1930 से पहले कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का नाम तक नहीं लिया। यह दल हाथ में कटोरा लेकर अंग्रेजों से आजादी की भीख मांगता रहा। तो भी डॉ. हेडगेवार ने महात्मा गांधी जी के सभी सत्याग्रहों और आंदोलनों में स्वयंसेवकों को भाग लेने की अनुमति दी। गांधी जी के नेतृत्व में आयोजित हुए असहयोग आंदोलन में स्वयं डॉ. हेडगेवार ने 6 हजार से अधिक स्वयंसेवकों के साथ ‘जंगल सत्याग्रह’ किया था। उन्हें 9 मास के सश्रम कारावास की सजा हुई थी। इसी प्रकार 1942 में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में सम्पन्न हुए ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन’ में संघ के स्वयंसेवकों ने अपने सरसंघचालक श्री गुरुजी गोलवलकर के आदेशानुसार हजारों की संख्या में भाग लिया था। इतना ही नहीं कांग्रेस के बड़े-बड़े नेताओं को संघ के कार्यकर्ताओं ने अपने घरों में शरण भी दी थी। उदाहरणार्थ दिल्ली के उस समय के प्रांत संघचालक श्री हंसराज गुप्त के घर में अरुणा आसफ अली और जय प्रकाश नारायण ठहरे थे। यद्यपि इस आंदोलन की घोषणा करने से पूर्व संघ जैसे कई शक्तिशाली संगठनों से कोई सलाह मशवरा नहीं किया गया तो भी राष्ट्र के हित में संघ के स्वयंसेवकों ने इसमें भाग लिया और जेलों में यातनाएं भुगतीं।
संघ ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया- ‘संघ अंग्रेजों का दलाल था’ इस तरह के अनर्गल और आधारहीन आरोप संघ पर वही लोग लगाते हैं जो स्वयं अंग्रेजों की इच्छा, योजना और उद्देश्य के साथ तालमेल बिठाकर ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ का नाटक करते रहे। जबकि संघ के स्वयंसेवक अपने तथा अपने संगठन के नाम से ऊपर उठकर प्रत्येक ढंग से लड़े जा रहे स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढ़ कर भाग लेते रहे।संघ की स्थापना (1925) से 1947 तक संघ के स्वयंसेवकों ने क्रांतिकारियों का साथ भी दिया और महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में संचालित सभी सत्याग्रहों में भाग लेकर जेल की यातनाएं भी सहन की। संघ संस्थापक डॉ हेडगेवार स्वयं दो बार कारावास में रहे। संघ के स्वयंसेवकों की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण पार्श्व भूमिका का विस्तृत वर्णन तो मैं अपने आगामी लेखों में करूंगा इस लेख में 26 जनवरी 1930 को देशव्यापि आयोजित स्वतंत्रता दिवस का संक्षिप्त वर्णन ही होगा।1925 में स्थापित संघ के स्वयंसेवक शाखा में भारत के सांस्कृतिक ध्वज और भारतीय राष्ट्र जीवन की पहचान एवं प्रतीक भगवा ध्वज के समक्ष एक प्रतिज्ञा करते थे जो इस प्रकार थी।

‘‘मैं अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए तन-मन-धन पूर्वक आजन्म और प्रामाणिकता से प्रयत्नरत रहने का संकल्प लेता हूँ।“

डॉ. हेडगेवार ने संघ स्थापना के समय घोषणा की थी ‘‘हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वतंत्रता है, संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए हुआ है।“राष्ट्रीय अभिलेखागार में गुप्तचर विभाग की एक रिपोर्ट सुरक्षित रखी हुई है। इस रिपोर्ट में संघ के अनेक कार्यकर्ताओं के नाम भी मिलते हैं, जो 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भागीदारी करने के कारण विभिन्न स्थानों पर हिरासत में लिए गए और जेलों में सजा भुगतते रहे। इन रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि विदर्भ के चिमूर आश्थी नामक स्थान पर तो संघ के कार्यकर्ताओं ने स्वतंत्र सरकार की स्थापना भी कर ली थी। संघ के स्वयंसेवकों ने अंग्रेज पुलिस द्वारा किये गए कई प्रकार के अमानवीय अत्याचारों का सामना किया। गुप्तचर विभाग की रिपोर्टों से पता चलता है कि अपनी सरकार स्थापित करने के बाद सरकारी आदेशों से हुए लाठी चार्ज/गोली वर्षा में एक दर्जन से ज्यादा स्वयंसेवक शहीद हुए थे। नागपुर के निकट रामटेक में संघ के नगर कार्यवाह श्री रमाकांत केशव देशपांडे उपाख्य बालासाहब देशपांडे को 1942 ‘‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’’ के आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने पर मृत्युदंड की सजा सुनाई गयी थी। परन्तु बाद में उन्हें इस सजा से मुक्त कर दिया गया। इन्हीं बालासाहब देशपांडे ने बाद में वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की थी। उल्लेखनीय है कि डॉ. हेडगेवार ने द्वितीय महायुद्ध के मंडराते बादलों को भांप कर देश में एक सशक्त क्रांति करने की योजना पर सुभाष चंद्र बोस, वीर सावरकर और त्रलोक्यनाथ चक्रवर्ती के साथ एक लम्बी और गहन चर्चा की थी। इसी चर्चा में से सेना में नौजवानों की भर्ती, सेना में विद्रोह और आजाद हिंद फौज के गठन का विचार उत्पन्न हुआ था। सारी योजना तैयार हो गई और काम शुरु हो गया। नौजवान योजनाबद्ध फौज में भर्ती हुए और सुभाष चंद्र बोस द्वारा विदेशों में जाकर आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभाल लिया गया और इधर अभिनव भारत, हिन्दू महासभा, आर्य समाज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सभी सशस्त्र क्रांतिकारी संगठनों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजाने के लिए शक्ति अर्जित करनी प्रारम्भ कर दी।आखिर वह समय आया जब फौज में विद्रोह हुआ और आजाद हिंद फौज भी इम्फाल तक पहुंच गई। अंग्रेजों को भय लगा, इस भयंकर विकट परिस्थिति से निपटने में अपने को असमर्थ पाकर अंग्रेजों ने अपने पहले फैसले को बदलकर 10 महीने पहले ही 15 अगस्त 1947 को देश के विभाजन की घोषणा कर दी। पहले फैसले के अनुसार विभाजन की तिथि 8 जून 1948 थी। यह देश का और स्वतंत्रता सेनानियों का दुर्भाग्य ही था कि कांग्रेस के नेताओं ने महात्मा गांधी की इच्छा के विरुद्ध 1200 वर्षों से चले आ रहे स्वतंत्रता संग्राम और लाखों बलिदानी हुतात्माओं के ‘‘अखण्ड भारत की सर्वांग स्वतंत्रता’’ के उद्देश्य को ध्वस्त करते हुए देश का विभाजन स्वीकार करके आधी-अधूरी आजादी प्राप्त कर ली। यदि एक वर्ष और ठहर जाते तो स्वतंत्रता भी मिलती और भारत का विभाजन भी न होता।
विभाजन के बाद महात्मा गांधी जी ने एक पत्र लिखकर कांग्रेस के नेताओं को सुझाव दिया था कि अब कांग्रेस को समाप्त कर के इसे एक सेवादल में परिवर्तित कर दो। महात्मा गांधी जी की इस इच्छा को ठुकरा दिया गया। उधर संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने स्वयंसेवकों को तेज गति से अपनी शक्ति बढ़ाने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि ‘डॉ. हेडगेवार का उद्देश्य पूरा नहीं हुआ, उनका उद्देश्य था अखण्ड भारत की सर्वांग स्वतंत्रता और सर्वांगीण विकास। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 1947 के बाद भी सक्रिय रहा। कश्मीर की सुरक्षा के लिए बीसियों स्वयंसेवकों ने बलिदान दिये। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने श्रीनगर में जाकर अपनी कुर्बानी दी। स्वयंसेवकों ने हैदराबाद और गोवा की स्वतंत्रता के लिए सत्याग्रह और संघर्ष किये।यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि इन सभी संघर्षों में संघ के स्वयंसेवकों ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की छत्रछाया में और तिरंगे की रक्षा के लिए अपने बलिदान दिए हैं। उल्लेखनीय है कि डॉ. हेडगेवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अंतिम उद्देश्य है- परम वैभवशाली अखंड हिन्दू राष्ट्र। परम वैभवशाली अर्थात: सर्वांग स्वतंत्र, सर्वांग संगठित, सर्वांग विकसित और सर्वांग सुरक्षित राष्ट्र।

 

 

 

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