चुनाव आयोग पर उठते सवाल, मनीष शर्मा

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Questions raised on Election Commission:नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच जबलपुर के प्रदेश संयोजक मनीष शर्मा ने चुनाव आयोग पर सवाल खड़े करते हुए कहा है की दुनिया के सबसे बडे़ लोकतंत्र जिसका आधार संविधान में निहित है लोकतंत्र का पर्व आम चुनाव के रूप में दर्ज़ है, किसी भी लोकतंत्र में वोट आम जनता की ताकत होती है जिसका इस्तेमाल जनता द्वारा किसी भी राजनीतिक पार्टी को वह पॉवर देने का कार्य करती है जिसके फलस्वरूप देश का शासन चला सके।लेकिन  वर्तमान समय में एक के बाद एक ऐसी घटनाएं घट रही है जिसके कारण परोक्ष रूप से चुनाव अयोजित करने वाली स्वतंत्र संस्था राष्ट्रीय चुनाव आयोग या राज्य चुनाव आयोग की कार्यप्राली संदेह के घेरे में आ गई है,

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लगाये गम्भीर आरोप 

वहीं मनीष शर्मा ने आरोप लगाते हुए यह कहा की देश में निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी संविधान में चुनाव आयोग में निहित है परंतु सत्ताधारी भाजपा सरकार के दखल के चलते चुनाव आयोग पर सवाल उठने लगे हैं।ज्यादा पुरानी बातों पर न जाकर विगत कुछ माह में चुनाव आयोग द्वारा उठाए गए कदमों पर दृष्टिपात करते हुए निष्कर्ष पर आयेंगे सर्वप्रथम जिस प्रकार चंडीगढ़ मेयर चुनाव में आयोग द्वारा नियुक्त निर्वाचन अधिकारी ने वोटिंग फार्मों को अनाधिकृत रूप से निरस्त किया जिसमें माननीय सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद निष्पक्ष चुनाव कराए गए परिणामस्वरूप चुनाव परिणाम उलट गया चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल खड़े करता है इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में, सूरत में सांसदों के चुनाव में ईवीएम मशीनों में नोटा का ऑप्शन होने के बाद भी निर्विरोध निर्वाचित किए गए एक ही विशिष्ट पार्टी के प्रत्याशी इस प्रकार आम नागरिकों के वोटिंग अधिकार को प्रभावित किया गया, असम के एक पोलिंग बूथ में 90 मतदाता सूची में दर्ज थे परंतु वहा 171 वोट मिले ईवीएम में साफ तौर पर निर्वाचन कर्मचारियों ने यह कारनामा अंजाम दिया है।उपरोक्त कुछ उदाहरणों से चुनाव आयोग की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठना लाजिमी है क्या यह भविष्य की झांकी है कि वर्तमान सत्ताधारी सरकार चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित कर मनमर्जी करना चाहती हैं या चुनाव आयोग अब बिकाऊ हों गया है खैर जो भी हो यह आम जनता से उसकी सबसे बड़ी ताकत वोटिंग पॉवर को खत्म करने की साज़िश ज्यादा बलवान महसूस होती है।

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