मित्रता मैं नही होनी चाहिए छल-कपट की भावना, हवन यज्ञ पूर्णाउति के साथ सप्ताह ज्ञान यज्ञ का हुआ समापन
सुग्रीव यादव स्लीमनाबाद-श्रीकृष्ण का नाम अनमोल है।यदि पापी भी श्रीकृष्ण का नाम लेता है तो उसे सद्गति मिल जाती है।जिसके ह्दय मैं प्रभु के प्रति भाव जागते है वही लोग प्रभु की कथा मैं शामिल होते है।श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर उसके उपदेश को जीवन मैं उतारे तभी कथा की सार्थकता है।भगवान का आगमन सदैव धर्म की रक्षा के लिए हुआ है।श्रीमद्भागवत कथा हमे समाज के संस्कार ,अच्छे बुरे की पहचान सिखाती है।सच्ची भक्ति से ही भगवान की प्राप्ति की जा सकती है।उक्त उद्गार जगदीश धाम खिरहनी स्थित हरिदास मंदिर मैं चल रहे सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दौरान कथा व्यास पंडित रमाकांत पौराणिक ने व्यक्त किये।कथा वाचक ने कथा के सातवें दिवस रविवार को श्रीकृष्ण-सुदामा चरित्र की कथा पर प्रकाश डाला।कथा वाचक ने कहा की भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती ने दुनिया को यह संदेश दिया कि राजा हो या रंक दोस्ती में सब बराबर होते हैं। श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज कहां है। द्वारपाल के मुख से पूछत दीनदयाल के धाम, बतावत आपन नाम सुदामा सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने राजमहल के द्वार पर पहुंच गए। यह सब देख वहां लोग यह समझ ही नहीं पाए कि आखिर सुदामा में ऐसा क्या है जो भगवान दौड़े दौड़े चले आए। बचपन के मित्र को गले लगाकर भगवान श्रीकृष्ण उन्हें राजमहल के अंदर ले गए और अपने सिंहासन पर बैठाकर स्वयं अपने हाथों से उनके पांव पखारे। कहा कि सुदामा से भगवान ने मित्रता का धर्म निभाया और दुनिया के सामने यह संदेश दिया कि जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नहीं हो सकता। राजा हो या रंक मित्रता में सभी समान हैं और इसमें कोई भेदभाव नहीं होता।श्रद्धालु श्रीकृष्ण सुदामा की कथा सुन भाव विभोर हो गए।सायंकालीन आरती कर कथा को विश्राम दिया गया व देर शाम हवन यज्ञ पूर्णाहुति हुई!
सोमवार को कन्या पूजन व कन्या भोज के साथ विशाल भंडारा आयोजित किया जायेगा!इस दौरान बड़ी संख्या मे श्रद्धालुओं की उपस्थिति रही।