सोसायटियों में डीएपी  का टोटा ,किसान परेसान,मिल रहा एनपीके

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जबलपुर :इन दिनों सोसायटियों में मांग के अनुरुप डीएपी खाद नहीं मिलने से किसान परेशान हो रहे हैं। हालांकि, सोसायटियों में डीएपी को छोडकऱ अन्य खाद का पर्याप्त स्टॉक है। लेकिन डीएपी के सब्सिट्यूट एनपीके को किसान लेना पसंद नहीं कर रहे हैं। जिसके कारण समस्या उत्पन्न हो रही है। आमतौर पर देखा गया है की किसान खाद विक्रेताओं से लेकर सेवा सहकारी समितियों के बाहर डीएपी खाद लेने लम्बी लम्बी कतार लगाए हुए दिन भर खड़े रहते हैं। जबकि एनपीके खाद उपलब्ध होने के बावजूद किसानों की पहली प्राथमिकता डीएपी ही रहती है जिसका फायदा कालाबाजारी उठा रहे हैं।

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*महंगे दाम में बेच रहे व्यापारी*

सोसायटियों में डीएपी खादी की कमी होने का पूरा फायदा व्यापारी उठा रहे हैं। डीएपी खाद को निर्धारित मूल्य से अधिक दाम पर बेच रहे हैं। बावजूद इसके किसान महंगे दाम पर भी डीएपी की खरीददारी कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार सोसायटियों में डीएपी खाद 1350 रुपए प्रति बोरी की दर से मिल रहा है। जबकि यही खाद 16 सौ रुपए प्रति बोरी की दर से बेचें जाने की जानकारी किसानों द्वारा दी जा रही है।

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*डीएपी और एनपीके में अंतर*

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि डीएपी एवं एनपीके दोनों प्रकार की खादों में दो प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते है। धान की फसल में कल्ले बढ़ाने नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की आवश्यकता होती है इसके अलावा डीएपी मिट्टी में शीघ्रता के साथ घुलकर पौधे को पोशाक तत्व प्रदान करती है।
डीएपी एक रासायनिक और अमोनिया आधारित खाद है। डीएपी में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन, 46 प्रतिशत फास्फोरस और 15.5 अमोनियम अमोनियम नाइट्रेट होता है। वहीं एनपीके में 12 प्रतिशत नाइट्रोजन, 32 प्रतिशत कार्बोक्सिलिक अम्ल और 16 प्रतिशत पोटेशियम होता है। जिसके चलते किसान डीएपी के स्थान पर एनपीके का उपयोग कर सकते हैं। डीएपी उर्वरक में पोटेशियम नहीं होता है। जबकि एनपीके उर्वरक में पोटेशियम भी होता है।किसान काफी सालों से डीएपी खाद का प्रयोग करते आ रहें है। उसका उन्हें परिणाम भी अच्छा मिल रहा है। इसलिए किसानों को डीएपी खाद ही चाहिए। इसके अलावा अन्य किसानों द्वारा भी डीएपी का इस्तेमाल किये जाने के कारण मांग लगातार बढ़ रही हैं।

*मृदा तत्वों का ज्ञान ना होने से बढ़ रही मांग*

सरकार ने प्रदेश के सभी विकास खण्डों में करोड़ों की लागत से मृदा प्रयोगशाला भवन सहित मशीनरी तो उपलब्ध करा दी लेकिन विशेषज्ञों की नियुक्ति नहीं किए जाने से किसान मृदा प्रयोगशाला के लाभ से वंचित है। विकास खण्डो में बनाए गए मृदा प्रयोगशाला के भवन लोकार्पण के पहले ही खंडहर में तब्दील हो रहे हैं वहीं लाखों की मशीनरी जंग खा रही है।मृदा परीक्षण न होने के कारण किसान को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि उसके खेत में किस पोषक तत्व की कमी है परंपरागत रुप रासायनिक उर्वरकों के उपयोग एवं आसपास के किसानों द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली रासायनिक उर्वरकों के उपयोग की होड़ के चलते किसान अंधाधुन रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर रहा है ।

*उर्वरा शक्ति हो रही प्रभावित

भारतीय किसान यूनियन के जिला अध्यक्ष एडवोकेट रमेश पटेल ने बताया कि रासायनिक उर्वरक के अंधाधुंध प्रयोग एवं पोषक तत्वों की सही जानकारी न होने के कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति प्रभावित होने के साथ-साथ समय एवं धन की भी हानि हो रही है। सरकार एवं कृषि विभाग के गंभीर न होने के कारण किसानों को मृदा परीक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा जिसके कारण किसानों द्वारा उचित मात्रा में रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल न करने के कारण हमेशा रासायनिक उर्वरक की उपलब्धता पर संकट के बादल छाते रहते हैं।
*किसने की समस्या से पल्ला झाड़ रहेअधिकारीयों*
एक और जहां किसान डीएपी की किल्लत झेल रहा है वहीं विभाग के आला अधिकारी किसानो की समस्या सुनने तक उपलब्ध नहीं है अनुविभागीय अधिकारी कृषि से डीएपी की उपलब्धता हेतु संपर्क करने का प्रयास किया गया किंतु उन्होंने फोन तक रिसीव नहीं किया

 

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