
जिले भर में रही दीवाली की धूम,माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा कर की सुख समृद्धि की कामना
जबलपुर :जिलेभर में पर्वो के पुंज दीपावली की धूम रही,वहीं इस दौरान लोगों ने बाजारों से जमकर ख़रीददारी की और दीवाली की रात माँ लक्ष्मी और भगवान गणेश और धन के देवता कुबेर महाराज का पूजन कर सुख सम्रद्धि की कामना की,वैसे तो हिन्दुओं के प्रमुख त्योहार दीपावली का उत्सव 5 दिनों तक चलता है। दक्षिण भारत और उत्तर भारत में इस त्योहार को अलग-अलग दिन और तरीके से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में दिवाली के 1 दिन पहले यानी नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इस दिन मनाया जाने वाला उत्सव दक्षिण भारत के दिवाली उत्सव का सबसे प्रमुख दिन होता है जबकि उत्तर भारत में यह त्योहार 5 दिन का होता है, जो धनतेरस से शुरू होकर नरक चतुर्दशी, मुख्य पर्व दीपावली, गोवर्धन पूजा से होते हुए भाई दूज पर समाप्त होता है।
दीवाली की धूम ,जमकर हुई खरीददारी
वहीँ दिवाली के पहले दिन धनतेरस को बाजारों से लोगों ने जमकर खरीदी की इस दौरान बाजारों में लोगों की भारी भरकम भीड़ नजर आई,तो वहीं अमावस्या को दीवाली के दिन लोगों ने भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा आराधना कर सुख सम्पत्ति का आर्शीवाद मांगा,
अमावस्या की रात से शुरू हो जाता है अहीर नृत्य
पैरों में घुंघरू और पारंपरिक वेश-भूषा, अपनी धुन में मदमस्त होकर नाचते अहीर। गीतों की धुन ऐसी कि सुनने वाले भी थिरकने से खुद को न रोक सकें। अहीर नृत्य की परंपरा कब शुरू हुई ये कोई नही बता पाता। लेकिन आज भी इसे परंपरागत रूप से वैसे ही देखने मिलता है जैसे बरसों पहले।अहीर नृत्य के नजारे दिवाली (अमावस्या) की रात से ही देखने मिलने लगते हैं। जो कि पूर्णिमा तक जारी रहते हैं। बताया जाता है कि अहीर नृत्य के लिए जिन परंपरागत वस्त्रों को धारण किया जाता है पहले उनकी पूजा की जाती है। वादन यंत्र भी विधि-विधान से पूजे जाते हैं। उसके बाद देवों की पूजा कर अहीर नृत्य किया जाता है।अहीर नृत्य कर रहे मंगल सिंह यादव कहते हैं कि पीढिय़ां गुजर गईं यह परंपरा निभाते। हम से पहले हमारे परिवार में कितने सालों से ये परंपरा है ये बताना मुश्किल है। नृत्य के लिए हर साल अहीरों की टोली शहर में घूम-घूम कर घरों में जाती है और परंपरागत नृत्य करते हैं। जिनके घर में अहीर नृत्य करते हैं वे उनका टीका लगाकर सम्मान करते हैं और उपहार भेंट करते हैं।
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