जन्मजात देशभक्त थे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार,डॉ. यतीश जैन

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डॉ. यतीश जैन (लेखक, शिक्षाविद्): भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अनेक विभूतियों ने राष्ट्र के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। इन्हीं विभूतियों में एक प्रमुख नाम है- डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार। वे केवल एक संगठन-निर्माता ही नहीं, बल्कि एक राष्ट्रदृष्टा और समाज को आत्मगौरव से जोड़ने वाले महापुरुष थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के माध्यम से उन्होंने भारत की भावी दिशा तय करने का प्रयास किया।डॉ. हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ। उनके पिता का नाम बलिराम पंत हेडगेवार और माता का नाम रेवतीबाई था। हेडगेवार का बचपन अत्यंत कठिन परिस्थितियों में बीता क्योंकि अल्पायु में ही माता-पिता का निधन हो गया। इसने उनके मन में आत्मनिर्भरता और संघर्षशीलता की भावना को दृढ़ किया।शिक्षा एवं क्रांतिकारी गतिविधियाँ- उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा नागपुर में और उच्च शिक्षा कोलकाता में प्राप्त की। वहीं से उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई कर एलएमपी (Licentiate in Medicine and Surgery) की उपाधि अर्जित की। कोलकाता प्रवास के दौरान वे अनुशीलन समिति जैसे क्रांतिकारी संगठनों के संपर्क में आए। स्वतंत्रता के प्रति उनके मन में गहरी आस्था और समर्पण यहीं से पुष्ट हुआ।

रामपायली की घटना– विद्यार्थी जीवन में वे क्रांतिकारी विचारों से बहुत प्रभावित थे। बंगाल में पढ़ाई (कलकत्ता मेडिकल कॉलेज) के दौरान उनका सम्पर्क अनुशीलन समिति और युगांतर समूह जैसे गुप्त क्रांतिकारी संगठनों से हुआ। नागपुर लौटकर वे क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए। रामपायली (नागपुर) की घटना उसी समय की है। यहाँ क्रांतिकारियों का एक गुप्त अड्डा था।डॉ. हेडगेवार वहाँ गुप्त बैठकों में जाया करते थे। अंग्रेजी हुकूमत को संदेह था कि यहाँ हथियारों और विस्फोटकों का संग्रह होता है। पुलिस की छापेमारी के कारण कई बार खतरे की स्थिति भी आई, लेकिन डॉ. हेडगेवार अपने साथियों के साथ बच निकलते थे। इस घटना से उनकी संगठन क्षमता और साहस स्पष्ट होता है।

थाने पर बम फेंकने की घटना: हेडगेवार युवावस्था में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ सशस्त्र आंदोलन के पक्षधर थे। नागपुर में 1908-1909 के आसपास क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए थाने पर बम फेंकने की योजना बनाई थी। इस घटना में सीधे तौर पर उनका नाम जुड़ा, ऐसा स्पष्ट ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है य लेकिन यह उल्लेख मिलता है कि उन्होंने गुप्त क्रांतिकारी दल के साथ मिलकर बम बनाने और उन्हें अंग्रेजी ठिकानों पर फेंकने की तैयारी में योगदान दिया। एक समय नागपुर पुलिस ने संदेह के आधार पर कई युवाओं को पकड़ा था, जिनमें डॉ. हेडगेवार भी शामिल थे, पर ठोस सबूत न होने से वे बच निकले। बाद में हेडगेवार ने समझा कि गुप्त क्रांति और बम-पिस्तौल से देश की आजादी कठिन है। इसलिए उन्होंने संगठन खड़ा करने का मार्ग अपनाया और 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।

स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी: 1915 में नागपुर लौटने के बाद वे कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बने। 1920 में असहयोग आंदोलन के समय उन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाने और विद्यार्थियों को सरकारी विद्यालय छोड़कर राष्ट्रीय विद्यालयों में प्रवेश दिलाने के कार्य में अग्रणी भूमिका निभाई। किंतु कांग्रेस की नीतियों में संगठनात्मक अनुशासन का अभाव देखकर वे निराश हुए।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना: डॉ. हेडगेवार का मानना था कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता से भारत सशक्त नहीं होगा, जब तक कि समाज संगठित और चरित्रवान न बने। इसी दृष्टि से उन्होंने 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।

संघ का उद्देश्य था– ‘‘भारतीय समाज को संगठित करना, आत्मगौरव से जोड़ना और राष्ट्रभावना को जागृत करना।’’ संगठनात्मक कौशल और कार्यपद्धति- संघ की शाखा प्रणाली, अनुशासन और प्रशिक्षण की पद्धति डॉ. हेडगेवार की मौलिक देन थी। वे मानते थे कि रोज शाखा में खेलकूद और बौद्धिक चर्चा के माध्यम से युवा पीढ़ी में देशभक्ति और संगठन-भाव जाग्रत होगा। उनका जीवन अत्यंत सादा था और वे स्वयं को हमेशा ‘‘प्रथम स्वयंसेवक’’ मानते थे।अत्याधिक परिश्रम और अस्वस्थता के कारण 1940 में उनकी स्थिति गंभीर हो गई। अंततः 21 जून 1940 को नागपुर में उनका देहावसान हुआ। उस समय संघ पूरे भारत में फैल चुका था और हजारों युवा राष्ट्र-सेवा के लिए तत्पर थे।डॉ. हेडगेवार का योगदान केवल संगठन तक सीमित नहीं था। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत की स्वतंत्रता तभी स्थायी होगी जब समाज में आत्मगौरव, अनुशासन और संगठन बद्धता होगी। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विशाल संगठन उनके उसी बीज-पुरुषत्व की देन है।डॉ. हेडगेवार का जीवन इस तथ्य का प्रमाण है कि महान कार्य केवल राजनीतिक मंच से नहीं, बल्कि समाज के मौलिक चरित्र और संगठन निर्माण से होते हैं। उनकी दूर दृष्टि और कार्यपद्धति आज भी भारत के सामाजिक-राजनीतिक जीवन को दिशा देती है।डॉ. हेडगेवार ने आठ वर्ष की छोटी सी आयु में ही यह प्रमाण दे दिया था कि राष्ट्रप्रेम उनके अंदर कूट कर भरा हुआ है। यह मौका था रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की साठवीं वर्षगांठ का जब इस उपलक्ष्य में उनके स्कूल में बांटी गई मिठाई का दोना उन्होंने घर आकर तिरस्कार पूर्वक फेंक दिया था। इसके बाद तो उनके व्यवहार में अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति विरोध के प्रमाण बार-बार मिलने लगे। जब वे नागपुर के नील सिटी स्कूल में नवीं कक्षा के छात्र थे तो तो उन्होंने अंग्रेज इंस्पेक्टर के आगमन पर अपने साथियों के साथ मिलकर निर्भय होकर वंदेमातरम का गगनभेदी नारा लगाया था। केशव हेडगेवार को भली-भांति मालूम था कि अपनी इस राष्ट्र भक्ति के लिए उन्हें स्कूल से निष्कासित भी किया जा सकता है परंतु मातृभूमि के प्रति अपने अटूट प्रेम की मुखरता के साथ अभिव्यक्ति के लिए उन्हें किसी दंड की परवाह नहीं थी।केशव बलिराम हेडगेवार का स्कूल से निष्कासन कर दिया गया, लेकिन उनके चेहरे पर जरा सी भी शिकन नहीं आई। अगर केशव हेडगेवार क्षमा याचना के लिए तैयार हो जाते तो उनका निष्कासन रद्द भी हो सकता था परंतु जिस छात्र के मन में राष्ट्र प्रेम का सागर हिलोरें मार रहा हो उससे ऐसी उम्मीद भी कैसे की जा सकती थी। केशव हेडगेवार तो इसके लिए पहले से ही मानसिक रूप से तैयार थे। इसके बाद स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए उन्हें पूना भेजा गया, जहां राष्ट्रीय विद्यालय से उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद वे चिकित्सा शिक्षा अर्जित करने के लिए कलकत्ता चले गए। वहां उन्होंने प्रथम श्रेणी में एलएम की परीक्षा तो उत्तीर्ण कर ली, परंतु तब तक उनके मन में मातृभूमि की सेवा में ही संपूर्ण जीवन समर्पित कर देने की उत्कंठा प्रबल हो उठी थी इसलिए कलकत्ता में मेडिकल की पढ़ाई के दौरान ही वे क्रांतिकारियों के संगठन ‘अनुशीलन समिति’ और ‘युगांतर’ के सम्पर्क में आ गए थे और उनकी गतिविधियों में सहयोग देने लगे थे। कलकत्ता में ही उनका हिंदू महासभा से जुड़ाव हुआ। जब उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर उपाधि अर्जित कर ली तब उन्हें ब्रह्मदेश में तीन हजार रूपए मासिक की सम्मानजनक नौकरी का ऑफर भी मिला था परन्तु डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार तो तन मन धन से मातृभूमि की सेवा का व्रत पहले ही ले चुके थे इसलिए उन्होंने मोटी तनख्वाह वाली नौकरी का ऑफर ठुकरा दिया और 1915 में नागपुर लौट आए।नागपुर लौट कर वे कांग्रेस पार्टी से जुड़ गए और शीघ्र ही विदर्भ प्रांतीय कांग्रेस के सचिव पद की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी गई। 1921 में कांग्रेस के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण उन्हें एक वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। जेल से रिहा होने के बाद उनके मन में हिंदू समाज को संगठित कर उसके लिए एक सशक्त प्लेटफार्म तैयार करने के विचार पनपने लगे और वे समान विचारधारा के लोगों से सम्पर्क साधने लगे। उन्होंने मन ही मन यह संकल्प ले लिया कि अब हिंदू समाज को संगठित करने के लिए एक सशक्त संगठन की स्थापना किए बिना चैन नहीं लेंगे। दरअसल यही वह समय था जब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के जीवन में निर्णायक मोड़ आने के संकेत मिलने लगे थे।डॉ. हेडगेवार ने हिंदू समाज को संगठित करने का जो सुनहरा स्वप्न अपने मन में संजोए रखा था उसे साकार करने का शुभ समय 1925 में विजयादशमी पुनीत तिथि को आया जब उन्होंने मुट्ठी भर साथियों के साथ मिलकर उस हिंदू संगठन की नींव रखी जो आज विश्व में हिंदुओं का सबसे बड़ा संगठन कहलाने का गौरव अर्जित कर चुका है। यहां यह भी विशेष उल्लेखनीय है कि इस नए संगठन का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामकरण भी इसकी स्थापना के एक वर्ष बाद किया गया था। जिस बैठक में नए संगठन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम दिया गया उस बैठक में तीन नाम प्रस्तावित किए गए थे। उन नामों पर बैठक में मौजूद सदस्यों की राय जानने के लिए मतदान कराया गया। चूंकि सदस्यों का बहुमत नवगठित संगठन का नामकरण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ करने के पक्ष में था इसलिए डॉ. हेडगेवार की मेहनत और लगन के इस मधुर फल ने उस दिन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में अपनी पहचान बना ली।

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