वट वृक्ष के नीचे गुड्डे-गुडियों की शादी करवाकर मनाया अक्षय तृतीया का त्योहार

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सुग्रीव यादव स्लीमनाबाद : स्लीमनाबाद तहसील क्षेत्र मे शुक्रवार को अक्षय तृतीया त्यौहार पारंपरिक उत्सवी माहौल पर धूमधाम से मनाया गया।ग्रामीण अंचलों मैं विवाह की सारी रस्में पलाश के वृक्ष के नीचे पूरी की गई |अगले चरण मे वट सावित्री अमावस्या को वटवृक्ष के छाव में  भोज के आयोजन के साथ उनका गठबंधन खोला जाएगा |अक्षय तृतीया के पर्व पर ग्रामीण अंचलों मैं बालक_बालिकाएं आम और बरगद के नीचे बैठकर मिट्टी के बने हुए गुड्डे-गुड़ियों (पुतरा-पुतरियों) का विवाह रस्म कराया गया।साथ ही प्रसाद के रूप नए चने की दाल वितरण की गई।इन्हें सत्यवान और सावित्री का प्रतीक भी कहा जाता है।अक्षय तृतीया के अवसर पर स्लीमनाबाद स्थित सिंहवाहिनी मंदिर मै महिला मंडल के द्वारा रामचरित मानस पाठ आयोजित किया।साथ ही सायकालीन आरती कर प्रसाद वितरण किया गया।वही दक्षिण मुखी हनुमान मंदिर, हरिदास ब्रजधाम कोहका, कोडिया स्थित श्रीराम जानकी मंदिर,खिरहनी स्थित जगदीश धाम मैं विविध धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए गए।

मिट्टी के नए घड़ा-कलश किये गए स्थापित

इस दिन मिट्टी के नये घड़ों-कलशों में जल भर कर और वट के पत्तों से बने दोनों में प्रसाद लगाकर घरो मैं पूजा की गई।
इस तरह खेल-खेल में बच्चे सामाजिक तालमेल, प्रकृति-संरक्षण का पाठ सीखते हैं। इस दिन लगाई हुई गाँठ बरगद के नीचे ही वट सावित्री (ज्येष्ठ अमावस्या ) को खोली जाएगी।
पंडित रमाकांत पौराणिक ने बताया कि यह मान्यता है कि इस दिन प्रारंभ किये हुए मांगलिक, सृजनात्मक कार्य का प्रभाव अक्षय होता है ।इस तिथि का सर्व सिद्घ मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना किसी पंचांग देखे कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, वस्त्र, आभूषण खरीदारी संबंधित कार्य किए जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है। सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। मां गंगा का आगमन और महाभारत युद्घ की समाप्ति भी इसी दिन हुई। यह तिथि बसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ दिन भी है। इस दिन दान करने से कोई क्षय नहीं होता है।


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