मिट्टी में जान फूंक कर लाते हैं लोगों के जीवन में उजियारा

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सुग्रीव यादव स्लीमनाबाद- दीपोत्सव पर्व के अब चंद दिन ही शेष है।जिसको लेकर कुम्हार समाज इन दिनों अपनी परम्परा का निर्वाह कर रहा है। मिट्टी को आकार देकर दीपोत्सव की तैयारियों मे जुट गए हैं।तेजी से कुम्हारों की चाक घूमने लगी है।क्योंकि दीपक बनाना इनके लिए सिर्फ रस्म नहीं बल्कि अपने परिवार की आवश्यकताओ की पूर्ति का जरिया है। आज से कुछ साल पहले तक अंचलों सहित शहरी क्षेत्रों में मिट्टी से निर्माण किए गए दीपक सहित बर्तन खिलौनों की खूब बिक्री हुआ करती थी, लेकिन धीरे-धीरे इलेक्ट्रोनिक एवं आधुनिक सामग्री ने बाजारों पर अपना एकाधिकार जमा लिया। लेकिन आज भी कुछ परिवार ऐसे हैं जिनके लिए यह सिर्फ रस्म नहीं है। बल्कि यह लोग आज भी इसे अपनी पूंजी मानकर अपने जीवन का अंधेरा दूर कर रहे हैं।अंचल मे ऐसे कई शिल्पकार हैं जो मिट्टी को नए नए आकार देकर अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं।नवरात्र का आरंभ होने के साथ ही पूरा परिवार दीपक बनाने के काम पर लग जाता है।
बाजार में इलेक्ट्रोनिक सामग्री की बिक्री बढऩे से भले ही इन परिवारों की उत्पादन की बिक्री प्रभावित हुई हो इनकी आमदनी पर फर्क पड़ा हो, पर इनका हौसला अब भी बरकरार है। जिससे यह अपनी प्राचीन परम्परा को आज भी जीवित रखे हैं और दीये, मूर्ति, खिलौने आज भी बनाने में जूटे हैं।

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आसान नहीं आकार देना-
दीपक बनाने वाले छपरा गांव के गणेश चक्रवर्ती, दस्सी चक्रवर्ती व कौड़िया ग्राम के जुगल चक्रवर्ती, जयकुमार चक्रवर्ती का कहना है कि मिट्टी को आकार देना आसान नहीं होता। हर साल दीपावली के पहले मिट्टी को महीन करना फिर गलाना, उसके कंकड़ साफ करना फिर चक्के पर रखकर अलग-अलग आकार दिया जाता है।महंगाई के इस दौर में हर कोई सस्ता और अच्छा खरीदने की चाह रखता है। शुद्ध रूप से पीली मिट्टी से बनने वाले दीये की बात ही कुछ और है। उनका परिवार सदियों से मिट्टी के दीपक बनाते आ रहे हैं। उनकी जानकारी के अनुसार उनकी तीन पीढिय़ों से बुजुर्ग मिट्टी के दीपक बनाते आ रहे हैं, तभी से यह मिट्टी को आकार देने की परम्परा हमारे परिवार में अक्षुण्ण है। उन्होंने बताया कि अभी मेरे साथ साथ मेरा पूरा परिवार दीपों के निर्माण में हमारा सहयोग कर रहा है।इस काम से वर्ष भर की जीवकोपार्जन हो जाती है।लक्ष्मी, गणेश प्रतिमाओं के साथ दीये बनाने का कार्य तेजी से चल रहा है,राजेश कुमार कुम्हार बताते है कि दीपोत्सव पर पूरे परिवार के सहयोग से पुजन के लिए सुंदर कलश, मिट्टी की लक्ष्मी और कुबेर की प्रतिमाएं, हवन कुंडी सहित अन्य सामान भी बनाते है। दीपोत्सव पर लोग पूरा नया सामान लेते है। उनका कहना था कि दीपोत्सव तक वह 40 से 50 हजार रुपए का व्यापार कर लेंगे। ऐसे में उनके घर भी अच्छे से दीपावली मन जाएंगी।

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बाजार मे सजेंगी दुकानें-
दीपावली को लेकर कुछेक लोगों ने बाजार में सामान लाना शुरू कर दिया है, लेकिन एक दो दिनों बाद हर कही दीपक और दीपोत्सव के उपयोग में आने वाले मिट्टी के बर्तनों की दुकानें सज जाएंगी।
साथ ही गांव गांव जाकर बिक्री भी शुरू कर दी गई है।

 

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