अब घरो से नही आती तिल -गुड़ के लड्डू की खुशबू,व्यंजनों के घरो मैं बनाने का चलन धीरे धीरे हो रहा खत्म

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कटनी/स्लीमनाबाद(सुग्रीव यादव ): दान-पुण्य के पर्व मकर संक्रांति पर मुख्य रूप से तिल-गुड़, शक्कर मिश्रित व्यंजन के दान व प्रसाद का महत्व माना जाता है। इसी मान्यता के चलते मकर संक्रांति पर घर-घर में तिल-गुड़ के लड्डू व अन्य व्यंजन बनाए जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।लेकिन मकर संक्रांति पर अब घरों में तिल के व्यंजनों की खुशबू नहीं आती। पूजन की परंपरा तो अब भी कायम है, मगर घरों में तिल-गुड़ के लड्डू व व्यंजन बनाने का चलन खत्म होता जा रहा है और तिल, गुड़ के व्यंजनों के लिए लोग बाजार का रुख कर कर रहे हैं।जिसका आलम स्लीमनाबाद मैं भी दिख रहा है।यहां लोग बाजार से बने बनाये तिल-गुड़ व गजक के व्यंजन खरीदते नजर आए।कहा जा रहा है कि आज के समय व्यस्तता के चलते घरो मैं व्यंजनों को बनाने का समय महिला वर्ग को नही मिलता है।इस कारण बाजार से खरीददारी कर ली जाती है।

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खरीदकर निभाते है परंपरा –

स्लीमनाबाद निवासी मनोरमा त्रिपाठी बताती है कि एक समय था जब पौष माह शुरू होते ही बाजार से सफेद व काला तिल खरीदकर ले आते थे। तिल को धोकर उसे सुखाया जाता था फिर उसे चुना जाता था। इसके बाद कड़ाही में सेंककर उसमें गुड़ की चाशनी मिलाकर लड्डू बनाए जाते थे। भगवान को भोग लगाकर पूरे माह लड्डू खाते थे, खासकर संक्रांति के दिन विशेष रूप से डिब्बा भरकर लड्डू बनते थे और अड़ोस-पड़ोस में भी सद्भावना के तौर पर लड्डुओं का आदान-प्रदान किया जाता था। अब इतनी मेहनत करने की हमारी उम्र नहीं रही और वर्तमान पीढ़ी की बहूओं को लड्डू बनाने में कोई रुचि नहीं रह गई है। इसलिए बाजार से लड्डू खरीदकर लाते हैं और पूजन की परंपरा निभाते हैं।

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बाजार के लड्डुओं में नहीं है स्वाद-स्नेह–

किवलरहा निवासी उमा अवस्थी बताती हैं कि पहले घर-घर में तिल के लड्डू बनाने की परंपरा थी, मगर अब उनकी गली में एकाध घर में ही लड्डू बनते हैं। बाकी घरों में बाजार से खरीदे जाते हैं। 10-15 साल पूर्व तक उनके घर में काला तिल का लड्डू भगवान शनिदेव को अर्पित किया जाता था और ग्रह शांति के लिए काले तिल से बने लड्डू कुत्तों व गाय को भी खिलाने की परंपरा थी। मकर संक्रांति पर सफेद तिल के लड्डू हम सभी मिलकर खाते थे। बाजार से मिलने वाले लड्डुओं में वह स्वाद व स्नेह नहीं है, जो घर के बने लड्डुओं में होता था।अब समय के साथ त्योहार मनाने का उत्साह भी फीका पड़ रहा है। कुछ सालों पूर्व तक संक्रांति के मौके पर कड़ाही में तेल चढ़ाने की परंपरा भी थी। हफ्ते भर पहले से किसी न किसी घर में प्रतिदिन तिल के लड्डू व बड़ा, भजिया खाने का निमंत्रण मिला करता था।वही तमुरिया निवासी नरेंद्र सैनी बताते है कि तिल-गुड़ के लड्डू खाने हम दूसरों के घर जाते थे और उन्हें अपने घर में भी आने का आमंत्रण देते थे। लेकिन अब किसी-किसी घर में ही यह परंपरा निभाई जा रही है।

 

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