महिलाओं को अपने अधिकारों को जानना जरूरी,जिससे कर सके उपयोग

सुग्रीव यादव स्लीमनाबाद : महिला एवं बाल विकास विभाग एकीकृत परियोजना बहोरीबंद के द्वारा बाकल हाई स्कूल मै लैगिंग उत्पीड़न एवं जेंडर आधरित हिंसा की रोकथाम को जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया!साथ ही महिला अधिकारों को लेकर जागरूकता कार्यशाला का आयोजन भी किया गया!जहाँ महिलाओं को महिला अधिकारों को लेकर जानकारियां प्रदान की गईं!पर्यवेक्षक कंचन माला प्रजापति ने महिलाओं को जागरूक करते हुए कहा कि महिलाओं को संविधान और विभिन्न विशेष कानूनों द्वारा कई अधिकार प्राप्त हैं!जिनमें हिंसा और भेदभाव से मुक्ति, समान कार्य के लिए समान वेतन, संपत्ति का अधिकार, शिक्षा और स्वास्थ्य का अधिकार,पंचायत व नगर पालिकाओं में आरक्षण शामिल हैं। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम,2005; दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961; और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 जैसे कानून महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण सुनिश्चित करते हैं।संविधान अनुच्छेद 14 के तहत महिलाओं को समानता का अधिकार प्राप्त है!भारत में धर्म, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता!वही पर्यवेक्षक सुनीता बेन ने कहा कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का अर्थ केवल शारीरिक हिंसा नहीं है। यह कहीं अधिक व्यापक है और इसमें यौन, भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और वित्तीय शोषण भी शामिल है। राष्ट्रीय योजना महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के दो मुख्य प्रकारों पर केंद्रित है -घरेलू ओर पारिवारिक हिंसा ओर यौन उत्पीड़न!महिला उत्पीड़न के मामलों में कई धाराएँ लगती हैं, जिनमें मुख्य रूप से भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 (लज्जा भंग करने के इरादे से हमला), 354A (यौन उत्पीड़न), और 509 (शब्द, इशारा या कार्य से लज्जा भंग करना) प्रमुख हैं, जो शारीरिक छेड़छाड़, अवांछित यौन प्रस्ताव, या आपत्तिजनक टिप्पणियों से संबंधित हैं; साथ ही, घरेलू हिंसा के लिए 498A और घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भी लागू होते हैं, जो मानसिक/शारीरिक क्रूरता से बचाते हैं। जेंडर आधारित हिंसा का मतलब है किसी व्यक्ति के लिंग के आधार पर उसके खिलाफ की गई कोई भी हानिकारक कार्रवाई, जिससे उसे शारीरिक, यौन, भावनात्मक या आर्थिक नुकसान पहुँचे, या नुकसान पहुँचाने की धमकी दी जाए, और यह अक्सर समाज में व्याप्त लैंगिक असमानता और शक्ति असंतुलन से जुड़ी होती है, जिसमें महिलाएँ और लड़कियाँ सबसे ज़्यादा प्रभावित होती हैं!घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 यह घरेलू हिंसा से प्रभावित महिलाओं को सुरक्षा और राहत प्रदान करता है।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961,दहेज लेना या देना कानूनी रूप से प्रतिबंधित है। सती प्रथा अधिनियम 1987 जो सती प्रथा को प्रतिबंधित करता है।गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित कार्यस्थल और मातृत्व अवकाश का अधिकार है।
महिलाओं को संपत्ति का मालिक होने का अधिकार है।
यदि कोई अपराध होता है, तो महिला किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करा सकती है!राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990 जिसका प्राथमिक उद्देश्य भारत में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें आगे बढ़ाना है। राष्ट्रीय महिला आयोग लिंग-आधारित भेदभाव, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और महिला अधिकारों के विभिन्न उल्लंघनों से संबंधित मामलों से सक्रिय रूप से निपटता है!इसके अलावा अन्य महिला अधिकारों को लेकर जानकारियां प्रदान की गईं!
इस दौरान आँगनबाडी कार्यकर्ता, सहायिका ओर छात्राओं की उपस्थिति रही!
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