रामलीला के मंच से छलका राम-वियोग का दर्द

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राजेश मदान बैतूल। गंज स्थित रामलीला मैदान में सोमवार रात धार्मिक भावनाओं से परिपूर्ण और दर्शकों को आत्मा तक झकझोर देने वाला मंचन देखने को मिला। आदर्श श्री इंद्रलोक रामलीला मंडल खजूरी, जिला सीधी द्वारा रामलीला के छठे दिन राजा दशरथ की प्रतिज्ञा, कैकई-मंथरा संवाद, श्रीराम के वनवास और उनके वियोग से जुड़ी गाथाओं का अत्यंत भावुक एवं मार्मिक चित्रण किया गया।कथा का आरंभ उस क्षण से हुआ जब राजा दशरथ ने श्रीराम के राजतिलक की घोषणा की। जैसे ही यह घोषणा हुई, महारानी कैकई की दासी मंथरा ने कैकई को पुराने दो वरदानों की याद दिलाई, जो दशरथ ने युद्ध के समय उन्हें दिए थे। मंथरा के बहकावे में आकर कैकई ने राजा दशरथ से दो वरदान मांगने का निश्चय किया। उन्होंने पहले वरदान में अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राज्य मांगा और दूसरे वरदान में श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास देने की मांग रखी।राजा दशरथ इस मांग से स्तब्ध रह गए। वह अपने वचनों के बोझ से दबे हुए थे और कैकई के इस निर्णय पर विरोध करने में असमर्थ रहे। मंच पर दशरथ और कैकई के बीच हुआ संवाद इतना भावुक और मार्मिक था कि मंच पर उपस्थित कलाकारों के साथ-साथ दर्शकों की आंखें भी नम हो गईं। जब यह समाचार श्रीराम तक पहुंचा, तो उन्होंने बिना किसी विरोध के पिता की आज्ञा का पालन करने का निर्णय लिया। इस निर्णय ने माता कौशल्या, सुमित्रा और समस्त अयोध्यावासियों के हृदय को झकझोर दिया। मगर धर्म की रक्षा करते हुए, श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनों की ओर प्रस्थान किया।
श्रीराम की मर्यादा और आदर्शों को नमन
इस भावमय दृश्य में जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण साथ-साथ मंच पर वनों की ओर प्रस्थान करते हैं, तब पूरे पंडाल में सन्नाटा छा गया और दर्शकों की आंखों से आंसू झलक पड़े। यह दृश्य हर किसी के मन को छू गया और राम के प्रति श्रद्धा और भी गहराई से प्रकट हुई। इस अवसर पर रामलीला में उपस्थित श्रद्धालुओं ने जय श्रीराम के नारों के साथ प्रभु श्रीराम की मर्यादा और आदर्शों को नमन किया।
श्री कृष्ण पंजाब सेवा समिति ने जताया आभार
श्रीराम बरात के स्वागत में सहयोग देने वाली समितियों और संगठनों का विशेष रूप से श्री कृष्ण पंजाब सेवा समिति द्वारा आभार व्यक्त किया गया। समिति ने उन सभी भक्तों और सेवाभावियों को धन्यवाद दिया जिन्होंने भगवान श्रीराम की भव्य बरात का स्वागत कर इस आयोजन को गरिमा प्रदान की।

 

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