क्या एक औरत की अस्मित और जीवन बर्बाद करने वाले को सरकार करेगी उपकृत?
विजया पाठक छत्तीसगढ़ :जल्द ही छत्तीसगढ़ को नया पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) मिलने वाला है। नक्सली मूवमेंट के कारण छत्तीसगढ़ राज्य सेंसिटिव माना जाता है, ऐसे में सरकार को यह तय करना है कि वो किसी योग्य को कुर्सी पर बिठाती है या किसी अयोग्य को। किसी भी प्रदेश की प्रगति के लिए बहुत सारे कारण ज़िम्मेदार होते हैं। बेहतर रोज़गार, उन्नत स्वास्थ्य एवं कृषि सेवाएँ, गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, भय और अपराध मुक्त माहौल। छत्तीसगढ राज्य बाक़ी सारे पैमानों पर तो बेहतर कार्य कर रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में पूरा प्रदेश गंभीर रूप से अपराध से ग्रस्त हो चुका है। अपराधियों के हौंसले बहुत बढ़े हुए हैं और पुलिस प्रशासन सुस्त पड़ा हुआ है। ऐसे समय में पुलिस महकमे की ज़िम्मेदारी के लिए नए हाथों का तलाशा जाना अपने आप में एक ज्वलंत चर्चा का विषय हो गया है। वर्तमान पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा को अगस्त में छह माह का एक्सटेंशन देने के बाद उनका कार्यकाल फरवरी 2025 में पूर्ण हो जाएगा। प्रदेश में चरमराती सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए नए पुलिस महानिदेशक का चुनाव सम्पूर्ण प्रदेश के लिए नितांत महत्वपूर्ण मुद्दा है। वैसे भी छत्तीसगढ राज्य का पुलिस महानिदेशक का चयन एक और दृष्टि से बहुत जटिल है क्योंकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने वर्ष 2026 में सम्पूर्ण देश को नक्सलवाद से मुक्त करने का संकल्प लिया है। छत्तीसगढ भी देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में से एक है जहाँ नक़्सलवाद ने प्रदेश के विकास में पुरज़ोर कुठाराघात किया हुआ है। ऐसे में प्रदेश में नए पुलिस महानिदेशक की आमद बहुत सारे सवालों के जवाब के साथ होगी। अभी तक अगले पुलिस महानिदेशक की क़तार में तीन नाम प्रमुख रूप से सामने आ रहे हैं जो हैं पवन देव, हिमांशु गुप्ता और अरुण देव गौतम। अगर वरिष्ठता की बात करें तो 1992 बैच के पवन देव सबसे आगे हैं। उनके बाद आते हैं अरुण देव गौतम और फिर नंबर आता है 94 बैच के हिमांशु गुप्ता का। वैसे सीनियरिटी में देखा जाए तो पवन देव राज्य के सबसे सीनियर आईपीएस अफसर हैं, उनके अलावा जीपी सिंह और एसआरपी कल्लूरी भी पद पर फिट बैठते हैं। दो नाम और है जिनमें से एक हिमांशु गुप्ता बड़े विवादित आईपीएस रहे हैं जिन पर सविता खंडेलवाल और उनके बेटे को लेकर तौहमत भी लगी थी। अरुण देव गौतम का भी नाम डीजीपी पद के लिए गया है, पर वो काफी इनेक्टिव/पैसिव अधिकारी रहे हैं। जबकि छत्तीसगढ़ राज्य में अभी एक तेजतर्रार डीजीपी चाहिए जो कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के विजन के अनुरूप राज्य में नक्सलवाद खत्म कर सके। छत्तीसगढ प्रदेश में एक विजनरी, साहसी और बेहतर रणनीतिकार पुलिस महानिदेशक की दरकार है जो ना सिर्फ़ अपराध और अपराधियों पर नकेल कस सकें बल्कि नक्सलवाद को समूल ख़त्म करने में अपने अनुभव और रणनीति का उपयोग कर प्रदेश को भय मुक्त बनाने में सफल हो सकें। आईये जानते हैं डीजीपी की रेस में कौन-कौन हैं दावेदार-
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*छत्तीसगढ़ डीजीपी के लिए सबसे उपयुक्त अधिकारी*
*पवन देव:* पवन देव डीजीपी के दावेदारों में सबसे प्रमुख हैं। पवन देव छत्तीसगढ़ में भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारियों में शामिल हैं। प्रदेश को 2026 तक नक्सल मुक्त करने का जो वादा है उसमें पवन देव की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। डीजी पुलिस अशोक जुनेजा के बाद बैच वाइज सीनियरिटी में पवनदेव 1992 बैच में सबसे ऊपर हैं। जुनेजा का कार्यकाल पूरा होने से पहले सरकार ने सीनियर आईपीएस अधिकारियों के नाम शॉर्टलिस्ट करके केन्द्रीय गृह मंत्रालय को गोपनीय प्रस्ताव भेजा था। इस प्रस्ताव में डीजीपी की रेस में सबसे पहले पवन देव का नाम चल रहा है। उज्जैन में 1995 में (पिंजारवाड़ी) महाकाल मंदिर से लगा हुआ था। इन्होंने उज्जैन में इस एरिया को बंद करवाया गया था। जो आज तक बंद है। अबूझमाड़ में छापा मारकर नक्सली नेक्सेस को नष्ट किया। 1998 में कांकेर नक्सलियों की केन्द्रीय समिति की बैठक पर छापा मारा, जो कि अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का एक एकलौता मामला रहा है। इसी दौरान 5000 नक्सलियों का समर्पण भी पोस्टिंग के दौरान हुआ। 2007 में छत्तीसगढ़ के निर्माण के बाद छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के कैंप पर छापा मारा गया। यह राज्य बनने के बाद नक्सलियों के खिलाफ पहली बड़ी कार्यवाही थी। इनके मार्गदर्शन में एसपी राजनांदगांव रहते हुए की गई और इसमें एक महिला नक्सली मारी भी गई। 2005 में नक्सलियों के खिलाफ सूचना संकलन के लिए (SIB) स्पेशल इंटेलिजेंस ब्रस्क का गठन किया गया। पुलिस अधीक्षक रेल के पद पर रहते हुए अतिरिक्त प्रभार के साथ इस ब्रांच के मुखिया का पदभार भी संभाला। उनका आईपीएस के रूप में कार्यकाल साफ-सुथरा रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य को उनके जैसा तेज तर्रार डीजीपी की आवश्यकता है।
आईपीएस पवन देव को वर्ष 2011 में राष्ट्रपति पुरस्कार प्रदान किया गया। राजनांदगांव नक्सली काउंटर में राज्य शासन द्वारा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया। इन्होंने नक्सलियों के प्रिंट यूनिट (प्रिटिंग प्रेस जिसमें अपना साहित्य छपवाते हैं) बंद करवाया। 2007 में जब पवन देव डीआईजी कांकेर थे तब फिर से नक्सली प्रिंट यूनिट पर छापा मारकर सभी साहित्य को नष्ट किया गया। 2008-2010 DIG (SIB) रहते हुए नक्सली इंटेलिजेंस ऑपरेशन किए गए। आधुनिक उपकरण किए गए। आधुनिक उपकरण से लैस कर सारे ऑपरेशन किये गए। आईजी प्रशासन 2011 में पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया संपूर्ण भारत में पहली बार आयोजित की गई। अन्य तरीकों को भी Adopt किया गया जो अन्य राज्यों के लिए मॉडल साबित हुआ। वर्ष 2018 में Director प्राजिक्यूशन रहते हुए विभाग हेतु ISO सटिर्फिकेट प्राप्त किया गया।
आईपीएस पवन देव छत्तीसगढ़ कैडर के 1992 बैच के आईपीएस हैं। वे मूलतः बिहार के रहने वाले हैं। उनका जन्म 16 जुलाई 1968 को हुआ है। उन्होंने बीई मैकेनिकल की डिग्री लेने के बाद यूपीएससी की तैयारी की और आईपीएस बने। आईपीएस की नौकरी करते हुए बिलासपुर यूनिवर्सिटी से उन्होंने एलएलबी की डिग्री भी प्राप्त की।
*एसआरपी कल्लूरी:* कल्लू्री ने डीजीपी बनने की 30 साल की सेवा की मियाद पूरी कर ली है। कल्लूरी के ऊपर कोई भ्रष्टाचार के आरोप नही हैं। कोई अनैतिक कार्यों का आरोप नही लगा। कल्लूरी बलरामपुर में जब एसपी थे तब उन्होंने पूरे नक्सलियों का सफाया कर दिया था। छत्तीसगढ़ की सीमा गढ़वा क्षेत्र से उन्होंने नक्सलियों सफाया किया। पहले कल्लूरी डीआईजी दंतेवाड़ा बस्तर रेंज के आईजी बने तब सबसे ज्यादा नक्सलियों का सफाया इनके कार्यकाल में हुआ।
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*जीपी सिंह:* ज्ञात हो कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जीपी सिंह के ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति, राजद्रोह और ब्लैकमेलिंग आदि मामलों में कार्रवाई की गई थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि उन्हें परेशान करने के लिए झूठे मामलों में फंसाया गया था और उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं। तत्कालीन भूपेश सरकार ने उन्हें राजनीतिक षड़यंत्र के तहत फंसाया था। उनके खिलाफ किसी भी मामले में कोई भी साक्ष्य नहीं है। कोर्ट ने उन्हें किसी भी मामले में आरोपी नहीं माना। जीपी सिंह का सम्पूर्ण सेवाकाल बेदाग रहा है। वापिस वर्दी में आते ही जीपी सिंह डीजीपी की रेस में भी शामिल हो गए हैं। 1994 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के अधिकारी जीपी सिंह डीजीपी रेस में शामिल सभी अधिकारियों से वरिष्ठता में कम हैं लेकिन अपनी तेज़ तर्रार, बेबाक और दबंग छवि के कारण वे पद के लिए उपयुक्त माने जा रहे हैं। यक़ीनन जीपी सिंह की बहाली ने डीजीपी चुनाव को अत्यंत रोमांचक बना दिया है। जीपी सिंह एक तेजतर्रार आईपीएस अधिकारी हैं और पद के लिए उपयुक्त भी हैं। यदि प्रदेश में जीपी सिंह डीजीपी बनते हैं तो सरकार का यह कदम न्यायोचित होगा।
*डीजीपी पद के लिए अनुपयुक्त अधिकारी*
*अरुण देव:* अरुण देव हमेशा से बैक फुट पर खेलते आए हैं, 1995 में अपनी पहली पोस्टिंग सीएसपी उज्जैन में थी। 1992 बैच के अरुण देव गौतम सितंबर 2027 में सेवानिवृत होंगे। लंबे कार्यकाल को देखते हुए पुलिस मुखिया बनाने पर विचार किया जा रहा है। लेकिन वह किसी भी काम को हाथ में नही लेते हैं और बचते हैं। रिस्पांसबिलिटी और दायित्व बिलकुल नही लेना चाहते। आज के परिपेक्ष्य में जब अमित शाह ने राज्य से 2026 तक नक्सलवाद के सफाए की घोषणा की है और निश्चित तौर पर अगर इसमें वो असमर्थ रहते हैं तो 2028 की विधानसभा चुनावों में यह एक प्रमुख मुद्दा रहेगा, अरुणदेव गौतम इस पद के लिए फिलहाल अनुपयुक्त नजर आ रहे हैं।
*हिमांशु गुप्ता:* हिमांशु गुप्ता का नाम चर्चा में आने के बावजूद उनकी नियुक्ति को लेकर कुछ विवाद भी हैं। सविता खंडेलवाल से उनके रिश्ते को लेकर खूब आरोप लगे जिसे लेकर तत्कालीन सरगुजा रेंज पुलिस महानिरीक्षक हिमांशु गुप्ता ने सविता खंडेलवाल को अम्बिकापुर सखी सेंटर के माध्यम से पागल घोषित करके रायपुर इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस में भेज दिया। डॉक्टर ने स्वस्थ होने पर डिस्चार्ज कर दिया। हिमांशु गुप्ता एक डरपोक अधिकारी के रूप में जाने जाते हैं।
*पति-पत्नी के विवाद में हिमांशु गुप्ता हुए थे बदनाम!*
*छत्तीसगढ़ के सबसे विवादित आईपीएस अफसर मुकेश गुप्ता के खास हैं हिमांशु गुप्ता*
सरगुजा रेंज के आईजी हिमांशु गुप्ता अचानक चर्चा में आ गए थे। चर्चा भी ऐसी-वैसी नहीं बल्कि उनके चरित्र पर सवाल उठाने वाली थी। मामला धमतरी का था। हिमांशु गुप्ता जब धमतरी एसपी थे तब हिमांशु के खिलाफ एक माह तक सविता खण्डेलवाल ने धरना दिया था। तो गुप्ता ने उसे पागलखाने भिजवा दिया था एवं उनके लड़के को बाल सुधार गृह में भिजवाया था। जबकि वह पागल नही था। सविता खंडेलवाल का कहना था कि वे पिछले कई वर्षों से घरेलू हिंसा का शिकार हैं। उन्होंने धमतरी कलेक्टर, एसपी से लेकर सीएम तक गुहार लगाई है। लेकिन उन्हें कहीं से मदद नहीं मिली। आखिरकार सविता खंडेलवाल ने एक महीना तक अपनी गुहार सरकार से लगाते हुए धरना दिया था। आखिरकार सविता ने सिस्टम से दुखी होकर हिमांशु गुप्ता एवं एक और सीनियर आईपीएस अफसर पर आरोप लगाकर खुदकुशी कर ली थी।
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