कब्र के बीच जिंदगी, कब्रिस्तान में मुर्दों के बीच जिंदगी की आस,क्या यही है बदलता हुआ भारत ?
विनय मौर्या (बनारस) :कब्रिस्तान में रात को जाने के नाम से कितने इंसानों के हलक से हकलाहट निकलने लगती है। मगर कुछ जिंदगीयां उसी कब्रिस्तान में बसर कर रही हैं। दिन हो या रात गर्मी हो या बरसात उनका सोना रहना खाना मुर्दों के बीच होता है।
कब्र के बीच जिंदगी
बनारस के कैंट रेलेव स्टेशन के गेट नंबर पांच के पास फुलवरियां के पास दलित कबीरपंथीयों का कब्रिस्तान है। जिनमें दर्जनों कच्ची पक्की कब्रें मौजूद हैं। उन कब्रों के बीच कब्र से सटकर कुछ पुराने कपड़ों औऱ टाट को जोड़कर झोपड़ीयां बनी हैं। कुछ एल्मुनियम के बर्तन पड़े हुये हैं।इस झुलसा देने वाली गर्मी में बच्चे वह पुरूष अधनंगे से पक्के कब्रों पर बैठकर पेड़ो की हवा ले रहे हैं।
बदबूदार नाला और कब्रो के बीच जिंदगी की आस
कब्रिस्तान के बगल में एक गन्दला सा नाला बह रहा है जिसकी दुर्गंध एक सामान्य व्यक्ति को उबकाई लाने के लिये पर्याप्त है।हम जब वहां पहुचें तो मुसहरों के लिये आश्चर्य जैसा था।हम पत्रकार हैं कुछ जानना चाहते हैं। हमने कब, कहां, क्यों, कैसे प्रश्नों को दागा तो मुसहरों का कुनबा हमारे इर्दगिर्द हो लिया। उन्होंने बताना शुरू किया ढाई साल पहले वह बगल के गांव की जमीन (सम्भवतः आबादी की ) पर डेरा था। हम लोगों से खाली करा दिया गया । जब रहने के लिये कहीं जगह नही मिली तो कुनबे इस कब्रिस्तान की पुरानी कच्ची कब्रों को समतल कर उसी पर डेरा बना लिया। तबसे सब यही हैं। कब्रिस्तान में रहते हो भूत-प्रेत डर नहीं लगता इस सवाल पर वह कहते हैं। साहब लगता है न…मगर करें तो क्या करें। हम लोगों को भूत पकड़ता है तो साल में तीन बार छौना (शूकर के बच्चे कि बलि)चढ़ाते हैं।काम क्या करते हो..? इस सवाल पर एक लड़का नाम डॉक्टर जिसके सीने पर मर्द ॐ औऱ नाग बना है कहता है। महुआ के पत्तो को तोड़कर बेचना या जो भी काम मिल जाये कर लेते हैं। या दफनाने आये मुर्दों के लिये गढ्ढे खोदने का भी काम कर लेते हैं। खाने के सवाल पर वह बताते हैं कि शादी ब्याह में बचे या फेंके गये खाने को लाकर खाते हैं। या कसाई की दुकान से मुर्गे का पंख लादी पचौनी पकाकर खाते हैं। वह बताते हैं कि उनका पूरा कुनबा अनपढ़ है। पोषण के अभाव में इनके बच्चे अक्सर किसी बीमारी की चपेट में आकर मर जाते हैं। जो जीवित बचते हैं,उनका भाग्य।यह बताते हैं कि बरसात में नाले का पानी चढ़ आता है। जिससे विषैले जीव जंतु भी कब्रिस्तान में ठिकाना बना लेते हैं।
कब्र पर बैठकर फोटोशूट
एक कब्र के सिरहाने वाली दीवाल पर फ्री वाली छतरी (डिश एंटीना) लगा था। हमने कहा टीवी है क्या तो वह सब लगे सकुचाने ।बताया कि खम्भे से तार खींचकर बल्ब और टीवी चलाते हैं। उनको लगा कि अगर हम टीवी का जिक्र करेंगे तो सम्भव है कि वह सब सरकारी सुविधा से वंचित रह जायेंगे।जब हम जाने लगें तो पूरा परिवार कब्रिस्तान के एक पक्के कब्र पर बैठकर फोटोशूट करवाया। जैसे आम आदमी कुर्सी पर बैठकर करवाता है।बहरहाल मुसहरों का हाल देखकर हम तो यही कहेंगे
कि…किसी को आलीशान महलों में नीद नहीं आती। किसी को मरघट भी आग़ोश में है सुलाती।
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