गोस्वामी तुलसीदास दास रामभक्ति के थे अमर साधक

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सुग्रीव यादव स्लीमनाबाद -श्रावण मास की सप्तमी तिथि पर मनाई जाने वाली गोस्वामी तुलसीदास जयंती केवल एक संत की स्मृति नहीं, बल्कि भारतीय भक्ति साहित्य की अमूल्य धरोहर का उत्सव है। तुलसीदास जी ने अपनी लेखनी से भगवान श्रीराम के आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाया। उन्होंने भक्ति को केवल पूजा नहीं, जीवन जीने की एक सजीव विधा के रूप में प्रस्तुत किया। उनकी रचनाएँ आज भी धर्म, नीति और भक्ति के अमिट स्रोत हैं।उक्त बातें प्राचार्या डॉ सरिता पांडेय ने तुलसीदास जयंती पर महाविद्यालय मे आयोजित संगोष्ठी कार्यक्रम मे कही!कार्यक्रम की शुरुआत गोस्वामी तुलसीदास के छायाचित्र पर माल्यार्पण व पूजन अर्चन कर किया गया!प्राचार्या डॉ सरिता पांडेय तुलसीदास जयंती का धार्मिक ओर सांस्कृतिक महत्व बतलाया!
कहा कि हर वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती मनाई जाती है। यह दिन भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा में विशेष स्थान रखता है। इस अवसर पर उनकी रचनाओं का पाठ, भजन-कीर्तन और विचार गोष्ठियों का आयोजन होता है। भक्त उनके जीवन और शिक्षाओं से प्रेरणा लेकर भक्ति, सेवा और सदाचार का मार्ग अपनाने का संकल्प लेते हैं।तुलसीदास का जन्म 1532 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के राजापुर गांव में हुआ था, और उनकी मृत्यु 1623 ईस्वी में काशी (वाराणसी) में हुई थी.
तुलसीदास, जिन्हें गोस्वामी तुलसीदास के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध वैष्णव (रामभक्त) हिंदू संत, भक्त और कवि थे। उन्होंने संस्कृत, अवधी और ब्रजभाषा में कई लोकप्रिय रचनाएँ लिखीं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध रामचरितमानस है, जो राम के जीवन पर आधारित संस्कृत रामायण का एक पुनर्कथन है, जो स्थानीय अवधी भाषा में है।

तुलसीदास रामभक्ति के अमर साधक

वहीं डॉ किरण खरीदी ने कहा कि तुलसीदास जी ने अपने जीवन को भगवान श्रीराम की भक्ति में समर्पित कर दिया। वे सगुण रामभक्ति के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से उन्हें राम दर्शन की अनुभूति हुई। उन्होंने भक्ति को जीवन की सबसे बड़ी साधना माना और अपने लेखन से लोगों को उस पथ पर चलने की प्रेरणा दी। उनकी भक्ति ने उन्हें एक साधारण कवि से संत बना दिया।‘रामचरितमानस’ गोस्वामी तुलसीदास जी की कालजयी रचना है। यह वाल्मीकि रामायण का सरल और सरस हिंदी रूपांतरण है, जिसे उन्होंने अवधि भाषा में लिखा ताकि साधारण जन भी भगवान राम की लीलाओं को समझ सकें। यह ग्रंथ भक्ति, मर्यादा, धर्म, प्रेम, त्याग और आदर्श जीवन का अद्भुत संगम है। श्रीराम का आदर्श चरित्र आज भी करोड़ों लोगों के जीवन का पथदर्शक है।

वहीं डॉ भरत तिवारी ने कहा कि तुलसीदास जी ने कुल 12 प्रमुख ग्रंथों की रचना की। इनमें ‘हनुमान चालीसा’ सबसे लोकप्रिय है, जिसे हर वर्ग और उम्र के लोग श्रद्धा से पढ़ते हैं। इसके अतिरिक्त ‘कवितावली’, ‘विनय पत्रिका’, ‘दोहावली’, ‘जानकी मंगल’ आदि ग्रंथों में भी उनकी भक्ति, करुणा और आध्यात्मिक अनुभूतियों का प्रभाव झलकता है। उनकी हर रचना लोकभाषा में होने के कारण सीधे हृदय तक पहुँचती है।इस दौरान डॉक प्रीत नेगी, डॉ प्रीति यादव डॉ भारती यादव, डॉ अशोक पटेल, डॉ अनिल शाक्य सहित महाविद्यालय स्टॉफ व छात्र -छात्राओं की उपस्थिति रही!


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