खरी-अखरी ,कब लेंगे या देंगे इस्तीफा पीएम मोदी ?

*शायद इसीलिए देश की सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों को इतना गरीब और विपन्न बना दिया गया है जहां पर राजनीतिक सत्ता देशवासियों को इस बात का अह्सास कराती रहती है कि उसका होना ही उनकी सुरक्षा है, उनकी मौत की सुरक्षा है। पिछले 10 – 11 सालों में लोगों के बीच ऐसी मानसिकता विकसित कर दी गई है कि लोगों ने यह देखना भी छोड़ दिया है की सिस्टम काम कर रहा है या नहीं, सिस्टम को चलाने वाला मंत्री कुछ करता भी है या नहीं, टैक्स पेयर के पैसे का उपयोग सत्ता अपने ऊपर करती है या आमजन पर। एक ऐसी व्यवस्था को लाकर खड़ा कर दिया गया है जहां पुरानी पारंपरिक संस्कृति के साथ जुड़ी हुई राजनीति खत्म हो चुकी है। लोगों ने सत्ता द्वारा किए गए अपराध को अपराध मानना छोड़ दिया है। सत्ता चाहती है कि देशवासी उसकी गलतियों को भी उपलब्धि तथा उसके हर निर्णय को अपने अनुकूल मानकर चले।*
*भले ही 172 बरस पहले भारत में जब रेल की नींव डाली गई थी तब यह सोच रही होगी कि इससे गाँव – कस्बों का सामान शहर के जरिए ब्रिटेन ले जाया जायेगा। लेकिन आगे चलकर रेलगाड़ी देश की रीढ़ (गरीब) को जिंदगी का सफर करने का माध्यम बन गयी। लेकिन इस दौर में लोगों को ही सामानों में तब्दील कर दिया गया और अभी भी लोगों को सामानों में बदलने की कोशिश लगातार चल रही है। रेल के साथ जितना खिलवाड़ मोदी सत्ता ने किया है उसका खुला नजारा एकबार फिर देश की राजधानी के नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन के प्लेटफॉर्म 14-16 पर 15 फरवरी 2025 की रात तकरीबन 10 बजे गवर्नेंस के जरिए देखने में आया जब एक खुलते ताबूत की तर्ज पर रेंगती हुई रेलगाड़ी और उस ताबूत में समाने के लिए नागरिकों की भीड़ किस तरीके से हिचकोले खा रही थी। शायद ही ऐसा नजारा दुनिया के किसी देश के शहर व राजधानी में देखा गया होगा।*
*देशभर के रेलवे स्टेशन रेल मंत्रालय ही चलाता है। स्टेशन परिसर और रेलगाड़ी के भीतर कौन खाना – चाय – पानी बेचेगा, कौन किताब बेचेगा, कौन चादर कंबल देगा इसका लाइसेंस भी रेल मंत्रालय ही देता है करोड़ों की बोलियां लगाकर। इस बार बजट में रेल विभाग को 2 लाख 55 हज़ार 445 करोड़ दिये गये हैं। मोदी सरकार के पहले रेलवे का अपना अलग बजट होता था जिसे वित्त मंत्री द्वारा बजट पेश करने के दूसरे दिन रेल मंत्री द्वारा पेश किया जाता था। दूसरे मंत्रालयों की वनस्पति रेल मंत्रालय के पास सबसे ज्यादा अमला है इसके बावजूद ऐसी कौन सी परिस्थितियां पैदा हो गईं जिससे इस दौर में लगने लगा है कि रेल अब सफर करने लायक नहीं रही। लोगों को यह विश्वास होता था कि वे रेल में सफर कर अपने गन्तव्य स्थान तक पहुंच जाएंगे। लेकिन पिछले 3-4 सालों में हुई रेल दुर्घटनाओं और उसके समानान्तर वंदे भारत को हरी झंडी दिखाते पीएम को बखूबी देखा गया है।*
*15 फरवरी की रात 10 बजे प्लेटफॉर्म में रेंग रही भीड़ के भीतर का सच ये है कि उसमें सरकारी नाम और सरकारी गाड़ी आता है जिसमें पूजा (8 साल बिहार), आहा देवी (79 साल बिहार), पिंकी देवी (41 साल दिल्ली), शीला देवी (50 साल दिल्ली), व्योम (25 साल दिल्ली), पूनम देवी (40 साल बिहार), ललिता देवी (35 साल बिहार), सुरुचि (11 साल बिहार), कृष्णा देवी (40 साल बिहार), शांति देवी (40 साल बिहार), संगीता मलिक (34 साल हरियाणा), पूनम (34 साल दिल्ली), ममता झा (40 साल दिल्ली), रिया सिंह (7 साल दिल्ली), बेबी कुमारी (24 साल दिल्ली), मनोज (47 साल दिल्ली), विजय शाह (15 साल बिहार), नीरज (12 साल बिहार) ऐसे 18 लोग हैं जो असमय कालकलवित हो गये। ये वो नाम हैं जिनको रेल विभाग ने जारी किया है। मरने वालों में 9 बिहार, 8 दिल्ली और 01 हरियाणा के हैं। जिन 45 घायलों की सूची जारी की गई है उसमें भी बिहार, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के लोगों की मौजूदगी है।*
*दिल्ली के एलजी इतने संवेदनशील हैं कि उन्होंने तो शुरुआत में इसे अफवाह करार दे दिया। सुबह होते – होते जब सारी स्थिति सामने आई तो पूरी डबल इंजन सरकार शोकाकुल हो गई। इंजन की हालत तो यह है कि जब वह रेलगाड़ी में लगता है तो फेल हो जाता है और जब सरकार में लगता है तो सरकार ही इतना ज्यादा फेल हो जाती है कि उस फेल को पास बताने के लिए सरकार हर जद्दोजहद करती रहती है। सवाल यह है कि क्या वाकई ऐसी स्थिति है कि किसी स्टेशन को सम्हालने के लिए जितने लोग चाहिए वह नहीं हैं या फिर हर कोई बेखौफ हो गया है कि हम अपना काम क्यों करें? हमारी सरकार है तो हम पर कोई कार्रवाई होगी नहीं। और पीएम गारंटी दे ही चुके हैं कि किसी पर कार्रवाई नहीं होगी। वह कह चुके हैं कि आपको काम करना है, काम करने में फेल हो जायें तो भी काम करना है, उसके बाद भी फेल हो जायें तब भी काम करते हुए दिखना है।*
*खुद पीएम हर दुर्घटना के बाद टेलिफ़ोन से बात करते हैं लेकिन जिम्मेदारी किसी की तय नहीं होती क्योंकि काम कर रहे हैं। मंत्री का इस्तीफा लेने से क्या होगा। उसके बदले जो आयेगा वह भी तो वही काम ही करेगा तो फिर इन्हीं को ही काम पर लगे रहने दिया जाए क्योंकि इनको काम का अनुभव भी हो गया है। माना जाता है कि प्लेटफॉर्म पर तकरीबन 22 कर्मचारी – अधिकारी की मौजूदगी होनी चाहिए। सिस्टम को ये मालूम होता है कि प्लेटफॉर्म पर कितनी गाडियां आयेंगी, उनमें कितनी जगह होगी, उस हिसाब से टिकटें दी जानी चाहिए। कुंभ मेले में जाने के लिए लोगों के भीतर कितनी उगलाहट है ये किसी से छिपा नहीं है। जब रेल विभाग खुद कहता है कि हर घंटे 1500 टिकटें जनरल क्लास की काटी जा रही है तो 22 को 44 किया जा सकता था। रेल विभाग गाडियों को समय पर चलाने, भीड़ को नियंत्रित करने और निर्धारित प्लेटफॉर्म पर गाड़ी लगाने में पूरी तरह से असफल रहा और सरकारी तौर पर 18 लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ी। प्रत्यक्षदर्शियों की माने तो मृतकों और घायलों का आंकड़ा कहीं ज्यादा बड़ा है।*
*कहा जा सकता है कि इस दौर में देश के भीतर कोई सिस्टम है ही नहीं। सिस्टम को चलाने वाले, कानून बनाने वाले, देश को हांकने वाले लाखों – करोड़ों का बजट लेकर सिर्फ एक रेलगाड़ी को सही तरीके से चला पाने की जिम्मेदारी से मुक्त होकर मुनाफा कमाने के लिए निजीकरण की दिशा में नीतियों का ऐलान करने से नहीं चूक रहे हैं। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव बार – बार रेलवे में अपनाई जा रही टेक्नोलॉजी की जानकारी देते रहते हैं लेकिन हर बार वह टेक्नोलॉजी फेल हो जाती है। चाहे वह रेल की टक्कर को लेकर हो या मानवीय भूल को लेकर हो, चाहे सिस्टम का चरमराना हो या सिस्टम का ना होना हो, कोई फर्क नहीं पड़ता। वह इसलिए कि मोदी सत्ता और उनकी पार्टी को मालूम है कि वक्त के साथ लोग भूल जायेंगे और वे अगले चुनाव में फिर से हमें ही जितायेंगे क्योंकि हमने इस दौर के 10 बरस में एक ऐसा मैसेज समाज और लोगों के भीतर भर दिया है कि हम हैं तो आप हैं हम नहीं हैं तो फिर आपके लिए जीवन और मरण दोनों मुश्किल हो जायेंगे।*
*रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की रील और उनका ये बयान देखने सुनने को मिल सकता है कि कल रात से सोया नहीं हूं, भोजन गले के नीचे उतरा नहीं है। इस देश में पहले भी कई रेल मंत्री हुए हैं जिनके कार्यकाल में रेल दुर्घटनाएं हुई हैं और उन्होंने इस्तीफा भी दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री ने रेल मंत्री रहते अपनी पहली ही रेल दुर्घटना पर यह कहते हुए तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया था कि मुझे नैतिक रूप से इस पद बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। मगर वर्तमान दौर तो नरेन्द्र मोदी का है जिसमें नैतिकता के लिए कोई जगह नहीं है। जिन्हें डर इस बात का है कि अगर मंत्री से इस्तीफा मांगा तो हो सकता है कि सारे मंत्रीमंडलीय सदस्य और बैसाखियां मुझसे ही इस्तीफा मांग लें वैसे भी मैं जबरदस्ती पीएम की कुर्सी पर कब्जा करके बैठा हुआ हूं। देशवासियों के लिए इतना जानना पर्याप्त है कि सरकार शोकाकुल है, चिंतित है, चिंतन-मनन कर रही है कि रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से इस्तीफा लेना चाहिए या नहीं लेना चाहिए।*
*अश्वनी बडगैया अधिवक्ता*
_स्वतंत्र पत्रकार_
इंडिया पोल खोल को आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु इस QR कोड को किसी भी UPI ऐप्प से स्कैन करें। अथवा "Donate Now" पर टच/क्लिक करें।
Click Here >>
Donate Now
इंडिया पोल खोल के YouTube Channel को Subscribe करने के लिए इस YouTube आइकन पर टच/Click करें।
इंडिया पोल खोल के WhatsApp Channel को फॉलो करने के लिए इस WhatsApp आइकन पर टच/Click करें।
Google News पर इंडिया पोल खोल को Follow करने के लिए इस GoogleNews आइकन पर टच/Click करें।