नियमों की धज्जियाँ उड़ा कर संचालित हो रहे कई पैथोलाजी सेंटर,बैन होने के बाद भी हो रहे डिजिटल हस्ताक्षर   

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जबलपुर :स्वास्थ्य विभाग ने जिले में संचालित पैथोलॉजी लैबों को खुली छूट दे रखी है। सुप्रीम कोर्ट के नए नियम के अनुसार पैथोलॉजी लैब चलाने के लिए अब सिर्फ एमडी पैथोलॉजिस्ट ही मान्य होंगे लेकिन इसके उलट बी. फार्मा व गायनोकोलॉजी डिग्री वाले लैब चला रहे हैं।सूत्रों की मानें तो जबलपुर शहर सहित ग्रामीण अंचलों में एक पैथालीजिस्ट के नाम पर 5 से 10 पैथोलाजी सेंटर संचालित हो रहे हैं और बैन होने के बाद भी डिजिटल हस्ताक्षर से रिपोर्ट तैयार कर मरीजों को दी जा रहीं हैं,जिनकी स्वास्थ्य विभाग द्वारा न तो जांच की जा रही है न ही इनपर कार्यवाही की जा रही है।

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देते हैं गलत रिपोर्ट 

वहीं जबलपुर के सिहोरा में पूर्व में कुछ पैथोलाजी के मामले भी प्रकाश में आ चुके हैं जिन्होंने मरीजों को गलत रिपोर्ट दी थी,गौरतलब है कि ब्लड, यूरीन, स्टूल का पैथोलॉजी टेस्ट किसी मरीज की बीमारी पता करने के लिए सबसे पहले करवाया जाता है। कोई भी डॉक्टर बीमारियों के इलाज की शुरुआत भी पैथोलॉजी टेस्ट की रिपोर्ट के आधार पर ही करता है ,

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना 

वहीँ सिहोरा सहित ग्रामीण अंचलो में चलने वाली पैथोलॉजी लैब में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन ही नहीं किया जा रहा है।नियम के मुताबिक एमडी और डीसीपी ही लैब का संचालन कर सकते हैं जबकि जिले में चल रहे अधिकांश पैथोलाजी सेंटरों लैब संचालकों के पास पीजी डिग्री या डिप्लोमाधारी पैथोलॉजिस्ट ही नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश के अनुसार लैब का संचालन करने वाला डिग्रीधारक है या नहीं स्वास्थ्य विभाग ने यह पता लगाना भी उचित नहीं समझा।

बैन होने के बाद भी हो रहे डिजिटल हस्ताक्षर 

वहीं पैथोलॉजी लैब की रिपोर्ट पर डिजिटल हस्ताक्षर भी मान्य नहीं हैं लेकिन ज्यादातर लैब में मरीजों को दी जाने वाली रिपोर्ट में लैब-संचालक के डिजिटल हस्ताक्षर ही हैं। समय बचाने के चक्कर में कई डिग्री धारियों ने हस्ताक्षरों को कम्प्यूटर में ही सेव कर दिया है। ऐसे में कम्प्यूटर से निकलने वाली रिपोर्ट में इनके डिजिटल हस्ताक्षर भी होते हैं। यह भी सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन है।

लैब सील करने के साथ संचालक पर दर्ज हो सकती है एफआईआर

मध्यप्रदेश शासन व इंडियन मेडिकल काउंसिल के नियमों व प्रावधानों के अनुसार नियमानुसार पैथोलॉजी लैब का संचालन नहीं करने पर संचालकों पर एफआईआर करने के साथ कानूनी धाराएं लगाकर कार्रवाई करने का प्रावधान है। वहीं सुप्रीम कोर्ट आैर मेडिकल काउंसिल के अनुसार मेडिकल साइंस में विशेषज्ञ भी वही कहलाएगा जो एमबीबीएस के बाद पीजी डिग्री या डिप्लोमाधारी होना चाहिए। वहीं इस सबंध में जब हमने सीबीएमो अर्सिया खान से उनके मोबाइल नंबर 70001 43761 पर सम्पर्क किया गया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।

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